Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 9
________________ तथा उनकी शिष्य-संतति आदि का विस्तृत विवरण इतिहास की दृष्टि से समाज के समक्ष रखा जाना अपरिहार्य है। प्रो० एम०ए० ढ़ांकी, शोध निदेशक, अमेरिकन इस्ट्टियूट ऑफ इन्डियन स्टडीज, वाराणसी (वर्तमान में गुड़गांव-हरियाणा) की प्रेरणा एवं सहयोग तथा प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ की सेवा में रहते हुए मैंने श्वेताम्बर गच्छों के इतिहास लेखन का कार्य प्रारम्भ किया और निर्बाध रूप से पिछले १० वर्षों में इस कार्य को एक सीमा तक पूर्ण करने का प्रयास किया, जिसका एक बड़ा भाग देश की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं - निर्ग्रन्थ (अहमदाबाद), सामीप्य (अहमदाबाद), तुलसीप्रज्ञा (लाडनूं), तित्थयर (कलकत्ता), शोधादर्श (लखनऊ), संस्कृतिसंधान (वाराणसी), श्रमण (वाराणसी) के अलावा विभिन्न अभिनन्दन ग्रन्थों एवं स्मारिकाओं आदि में प्रकाशित हो चुका है तथापि अभी आधे से भी अधिक सामग्री अप्रकाशित ही पड़ी हुई है। पूर्व में गच्छों के इतिहास का प्रकाशन प्रो०एम०ए० ढ़ांकी और प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी और शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद के संयुक्त तत्त्वावधान में होना निश्चित् हुआ था, परन्तु अब यह इतिहास अलग-अलग खण्डों में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी और प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर द्वारा संयुक्त रूप में प्रकाशित होने जा रहा है। इस क्रम में सर्वप्रथम तपागच्छ का इतिहास, भाग-१, खण्ड-१ विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत है। तपागच्छ के इतिहास के लेखन एवं संशोधन में मुझे प्रो० एम०ए० ढांकी, प्रो० सागरमल जैन, साहित्य महारथी श्री भंवरलालजी नाहटा, महोपाध्याय विनयसागर जी आदि से जो सहयोग मिला उसके लिये आभार व्यक्त करने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं। विनयसागर जी ने इस पुस्तक की पाण्डुलिपि के एक-एक शब्द को पढ़ा और उसमें यथावश्यक संशोधन किये, एतदर्थ हम उनके विशेष कृतज्ञ हैं। ___ प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन का पूर्ण श्रेय प०पू० आचार्य राजयशसूरीश्वर जी मसा०; प्रो० भागचन्द्र जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी और महो० विनयसागर जी, जयपुर को है, अत: मैं इन सभी का हृदय से आभारी हूँ। शिवप्रसाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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