Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 8
________________ III समुदायों के कुछ प्रमुख आचार्यों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया गया है, परन्तु इससे वे सभी बातें ज्ञात नहीं हो पाती जिनकी प्रामाणिक इतिहास लेखन के सम्बन्ध में आवश्यकता होती है। एक पट्टधर आचार्य के कितने शिष्य हुए, उन्होंने कितने आचार्य बनाये और कहाँ-कहाँ प्रतिष्ठा आदि करवायी,उनके द्वारा की गयी साहित्य सेवा आदि उपयोगी सूचनाओं का उसमें अत्यन्त संक्षिप्त और अपूर्ण विवरण है। ऐसी स्थिति में उसे आधार बना कर लिखा गया इतिहास भी अपूर्ण ही होगा। संविग्न परम्परा के इतिहास के अध्ययन के सम्बन्ध में यह भी अनुभव हुआ कि देश के विभिन्न भागों में चातुर्मास या उसके पश्चात् मुनिजनों से वहाँ जाकर सम्पर्क कर पाना कठिन, समयसाध्य एवं व्ययसाध्य होने से अव्यावहारिक है, साथ ही उनसे आवश्यक सामग्री का प्रामाणिक एवं परिपूर्ण रूप में मिल पाना भी सरल नहीं है। संविग्न परम्परा के इतिहास के अध्ययन का एक ही सुगम उपाय हो सकता है और वह यह कि प्रत्येक समुदाय के गच्छाधिपति आचार्य अपने-अपने अधीनस्थ किन्हीं विद्वान् मुनिजनों को अपने-अपने समुदाय की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक के प्रत्येक पट्टधर आचार्यों के परिचय एवं उपलब्धियाँ, उनके शिष्य परिवार आदि का विवरण इतिहास के रूप में प्रस्तुत करने का कार्य सौंपें। यह कार्य उनके लिये उसी प्रकार सरल होगा जिस प्रकार किसी शिक्षित व्यक्ति द्वारा अपने परिवार की कतिपय पीढ़ियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना। प्रस्तुत शोध योजना के अन्तर्गत तपागच्छ के संविग्न-परम्परा के इतिहास लेखन में मैंने आवश्यक सामग्री के संकलन हेतु विभिन्न समुदायों के आचार्यों से सम्पर्क करने का प्रयास किया, किन्तु दो-तीन समुदायों को छोड़कर अन्य समुदायों के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी। ऐसी स्थिति में संविग्न परम्परा के मात्र कुछ समुदायों के पट्टधरों का संक्षिप्त विवरण देना उचित नहीं लगा। सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो० एम०ए० ढांकी और महोपाध्याय विनयसागरजी भी हमारे इस विचार से सहमत दिखे। संविग्न परम्परा की प्रत्येक शाखाओं में विगत १००-१५० वर्षों में अनेक विद्वान् और प्रभावशाली आचार्य एवं मुनिजन हो चुके हैं और आज भी हैं। इन सभी के द्वारा की गयी साहित्यसेवा, ग्रन्थलेखन आदि का कीर्तिमान स्थापित हो चुका है। आचार्य आत्माराम जी अपरनाम विजयानन्दसूरिजी महाराज, शासनसम्राट विजयनेमिसूरि, विजयधर्मसूरि, विजयराजेन्द्रसूरि, बुद्धिसागरसूरि, सागरानन्दसूरि, विजयसिद्धिसूरि, विजयलब्धिसूरि, विजययतीन्द्रसूरि, विजयवल्लभसूरि, मुनि विद्याविजयजी, विजयेन्द्रसूरि, मुनि पुण्यविजयजी आदि अनेक विद्वान् मुनिजन इस काल में हो चुके हैं और आज भी विभिन्न विद्वान् आचार्य एवं मुनिजन विद्यमान हैं जिनकी साहित्यिक एवं अन्य उपलब्धियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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