Book Title: Tansukhrai Jain Smruti Granth
Author(s): Jainendrakumar, Others
Publisher: Tansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ देश-सेवा सन् १९१९ मे जबकि असहयोग प्रान्दोलन शुरू हुआ और हमारे देश मे आजादी की लहर दौडी तो उनसे न रहा गया। एकदम स्वदेशी वस्तुनो का प्रयोग करना शुरू कर दिया। पंजाबकेमरी लाला लाजपतराय के साथ तिलक स्वराज्य फण्ड मे रुपया एकत्रित करने मे आपने बड़ा कार्य किया । प्राप पर लाला लाजपतरायजी का बड़ा प्रेम था। लोकनायक प० जवाहरलालजी नेहरू के साथ-साथ रोहतक, करनाल आदि जिलो मे दौरा किया। रोहतक में जब माता कस्तूरबा गाँधी पधारी और चर्खा बङ्गल हुआ जिसमे २५० महिलाएं सम्मिलित हुई तो आपने प्रत्येक महिला को ५) प्रौर चाँदी की तकली भेट मे दी । असहयोग आन्दोलन मे ६ माह कारावास मे रहे । १९४२ मे दिल्ली प्रदेन काग्रेस के अध्यक्ष रहे । हरिजनो के लिए उन्होंने एक बोर्डिङ्ग हाउस की स्थापना कराई । प्राप उन व्यक्तियो मे से थे जो अन्त तक अपने को छिपाए रखना चाहते थे । अथक उत्माह, स्फूर्ति, व्यवसाय कुशलता, नम्रता, सच्चाई आदि लोकोत्तर गुणों की मूर्ति थे । आप देन और समाज के निर्भीक सिपाही थे । लक्ष्मी इन्शोरेन्ा और तिलक बीमा कम्पनी भारत को प्रसिद्ध प्रगतिशील राष्ट्रीय कम्पनी रही है। यह कम्पनी उच्च आदर्श और लोकहित के सदेश को लेकर कार्यक्षेत्र मे उतरी उसका मूल उद्देश्य भारत की प्रार्थिक स्थिति को वैज्ञानिक ढंग से उन्नत करना मोर भारत की बढती हुई वेकारी को दूर करना प्रापने अपने नेतृत्व मे उसका बडी सफलता के साथ सचालन किया 1 समाज-सेवा आपके जीवन पर श्रापकी धर्मपरायणा माताजी और उदार हृदय पिताजी का प्रभुत प्रभाव पडा । माताजी ने समाज सेवा की ओर प्रेरित किया । इस युग के समन्तभद्र महान कर्मयोगी ० सीतलप्रसादजी, और विद्यावारिधि वैरिस्टर चम्पतरायजी वीर प्रभु की पवित्र वाणी को देश विदेशो मे फैलाने मे सतत प्रयत्नशील रहते थे । उन्होंने समाज मे नये युग का आह्वान किया, विरोध को चुनौती दी और सघर्ष से टक्कर ली। दोनो का हृदय जैन धर्म की श्रद्धा से श्रोत-प्रोत था । उनकी रुचि दीप शिखा की तरह शान्त, स्निग्ध और स्थिर थी । परिपद की पतवार अपने समर्थ हाथो में लेकर उन्होंने कभी तूफान की पर्वाह की न प्रलय की । वह जैन धर्म के वडे मर्मज्ञ थे। दोनो के जीवन का अद्भुत प्रभाव उनके हृदय पर पड़ा। परिपद के प्रधान मन्त्री वनकर परिषद की सफलता को मुट्ठी मे लिए फिरते थे। उनके कार्यों, त्याग और उदारता को देखकर सब लोग भूरिभूरि प्रशमा किया करते थे। परिपद के लिए उन्होने अपना तन-मन-वन लगा दिया । भेलसा, सडवा, मतना, भासी प्रादि के अधिवेशन उनकी सफलता के सर्वोत्तम उदाहरण है । वीर सेवा सध की स्थापना करके नवयुवको को नामाजिक कार्यो की ओर लगा दिया । वीर जयन्ती की छुट्टी के लिए उन्होंने वडा प्रयत्न या । उनकी भावना यो कि कोई सामाजिक उद्योग होना चाहिए | सेवा के कार्य मे वे सबसे भागे थे । वे कहा करते थे कि मैं जैन समाज का मदम्य हूँ पर वैसे ही भारतीय

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 489