Book Title: Swarna Sangraha
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 10
________________ चौसठ इन्द्र आवियाजी, छप्पन दिशा कुमार । असूचि कर्म निवारनेजी, गावे मंगलाचार ॥१७॥ प्रतिबिम्ब पास में धरियोजी, माता ने विश्वास । शकेन्द्र लीधा हाथ में जी, पंचरूप प्रकाश ॥जि. १८॥ मेरु शिखर न्हवरावियाजी, तेहनो बहु विस्तार । इन्द्रादिक सुर नाचियाजी, नाचे अप्सरा नार जि. १९।। अठाई महोत्सव सुर करेजी, द्वीप नन्दीश्वर जाय । गुण गावे प्रभुजी तणांजी, हिरड़े हर्ष न जाय ॥जि. २०॥ प्रभाते जो स्वप्नो भणेजी, भणता आनन्द थाय । रोग-शोक दूरा टलेजी, अशुभ कर्म सब जाय जि. २१॥ || हथणी ॥ (तर्ज-हथणी सिनगारो के देव पूतलियां) हथणी सिनगारो के देव विराजिया ॥टेर।। आदिनाथ करे रे नमस्कार, मोरादेवीजी मायडिया॥१॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया । शान्तिनाथजी करे रे नमस्कार, अचलादेवीजी मा. ॥२॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया । नेमीनाथजी करे रे नमस्कार, सेवादेवीजी मा. ॥२॥ हथणी सिनगारो के देव विराजिया। पार्श्वनाथ करे रे नमस्कार, वामादेवीजी मा. ॥४॥ 5

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