Book Title: Swarna Sangraha Author(s): Amolakrushi Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal View full book textPage 9
________________ कुंभ कलश रत्ना जड़योजी, उदक भर्यो सुविशाल । कमल फूलां को ढाकनोजी, नवमो स्वपन रसाल।जि.६॥ पद्म सरोवर जल भरयो जी, कमल करी शोभाय । देव-देवी रंग में रमेजी, देख्या आवे दाय जि. ७॥ क्षीर समुद्र चारों दिशाजी, जेनो मीठो नीर । दूध जैसो पानी भरयो जी, तिन रोकोई न पार जि. ८॥ मोत्यां केरा झूमका जी, देख्या देव विमान । देव-देवी कौतुक करेजी, आवता आसमान ॥जि. ९॥ रत्नांरी राशि निर्मलीजी, देख्यो स्वपन उदार । स्वपनो देख्यो तेरमो जी, हियड़े हर्ष अपार ॥जि. १०॥ ज्वाला देखी दीपतीजी, अग्नि शिखा बहतेज । इतने जाग्या पद्मिनीजी, धरता स्वपना से हेत ॥जि. ११॥ गजगति चाल्या मलकताजी, आया राजाजी रेपास । भद्रासन आसन दियोजो, स्वामी पूछे हुल्लास जि. १२॥ कहो किन कारण आवियाजी, कहो थारा मननी बात। चवदा सपना देखियाजी, अर्थ कहो साक्षात ॥जि. १३।। स्वपना सुन राया हषियाजी, कीनो स्वपन विचार । तीर्थकर चक्रवर्ती होवसीजी,तीन लोक आधार जि.१४॥ प्रभाते पंडित तेड़ियाजी, करनो स्वपन विचार । तीर्थक र चक्रवर्तीहोवसीजी, तीन लोक आधार जि.१५॥ पंडित ने बहु धन दियोजी, वस्त्र ने फूल-माल । गर्भवास पूरा थया जद, जनम्या पुण्यवंतबाल ॥१६॥Page Navigation
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