Book Title: Swami Samantbhadra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 180
________________ समय-निर्णय । किसी तरह भी ठीक मालूम नहीं होता। जान पड़ता है उन्होंने इस समीकरणको लेकर ही दो ताम्रपत्रोंमें उल्लेखित हुए तोरणाचार्यको, कुन्दकुन्दान्वयी होनेके कारण, केवल डेढ़सौ वर्ष पीछेका ही विद्वान् कल्पित किया है; अन्यथा, वैसी कल्पनाके लिये दूसरा कोई भी आधार नहीं था । हम कितने ही विद्वानोंके ऐसे उल्लेख देखते हैं जिनमें उन्हें कुन्दकुन्दान्वयी सूचित किया है और वे कुन्दकुन्दसे हजार वर्षसे भी पीछेके विद्वान् हुए हैं। उदाहरणके लिये शुभचंद्राचार्यकी पट्टाव. लीको लीजिये, जिसमें सकलकीर्ति भट्टारकके गुरु 'पद्मनन्दि'को कुन्दकुन्दाचार्य के बाद 'तदन्वयधरणधुरीण' लिखा है और जो ईसाकी प्रायः १५ वीं शताब्दीके विद्वान् थे । इसलिये उक्त ताम्रपत्रोंके आधारपर तोरणाचार्यको शक सं० ६०० का और कुन्दकुन्दको उनसे १५० वर्ष पहले-शक सं० ४५०-का विद्वान् मान लेना युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता और वह उक्त समीकरणकी मिथ्या कल्पना पर ही अवलम्बित जान पड़ता है। ४५० से पहलेका तो शक सं०३८८ का लिखा हुआ Same name was the contemporary and deciple of Sri Kundakunda. इन शब्दोंसे यह ध्वनि निकलती है कि इस शिवस्कंदका ईसाकी पहली शताब्दीके पूर्वार्धमें होना चक्रवर्ती महाशयको शायद कुछ संदिग्ध जान पड़ा है, वे उसका कुछ बादमें होना भी संभव समझते हैं, और इस लिये उन्होंने इस शिवस्कंदसे पहले उसी नामके एक और पूर्वजकी कल्पनाको भी कुन्दकुन्दकी समकालीनता और शिष्यताके लिये स्थान दिया है। १ ये ताम्रपत्र राष्ट्रकूट वंशके राजा तृतीय गोविन्दके समयके हैं और तोरणाचार्य के प्रशिष्य प्रभाचन्द्रसे सम्बंध रखते हैं। इनमें एक शक सं० १९ और दूसरा ७२४ का है। देखो, समयप्राइतको प्रस्तावना और षट्प्राभृतादि. संग्रहकी भूमिका । २ देखो जैनसिद्धान्तभास्करकी ४ थी किरण, पृष्ठ ४३ ।

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