Book Title: Swami Samantbhadra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 254
________________ स्वामी समन्तभद्र। २४५ सिद्धान्तोंके --कर्मप्राभूत नामक षट्खंडागम और कषायप्राभृतके ज्ञाता हुए थे और इसलिये उन सिद्धान्तोंकी रचनामें कारणीभूत ऐसे धरसेन, पुष्पदन्त, भूतबलि तथा गुणधरादि' आचार्योंको उनसे पहलेके विद्वान् समझना चाहिये। (२) विबुध श्रीधरने तुम्बुलराचार्यको षट्खण्डागमादि सिद्धान्तग्रंथोंका टीकाकार नहीं माना । उन्होंने, अपने श्रुतावतारमें 'कुन्दकोति' के बाद 'श्यामकुण्ड'को, श्यामकुण्डके बाद 'समन्तभद्र'को और समन्तभद्रके बाद 'वप्पदेव'को टीकाकार प्रतिपादन किया है । यथा षष्ठखंडेन विना तेषां खंडानां सकलभाषामिः पद्धतिनामग्रंथं द्वादशसहस्रप्रमितं श्यामकुण्डनामा भट्टारकः करिष्यति तथा च षष्ठखण्डस्य सप्तसहस्रप्रमितां पंजिकां च । द्विविध सिद्धान्तस्य व्रजतः समुद्धरणे समन्तभद्रनामा मुनीन्द्रो भविष्यति सोपि पुनः षट्खण्डपंचखण्डानां संस्कृतभाषयाष्टषष्ठिसहस्रप्रमितां टीका करिष्यति द्वितीयसिद्धान्तटीका शास्त्रे लिखापयन् सुधर्मनामा मुनिर्वारयिष्यति द्रव्यादिशुद्धेरभावात् । इति द्विविधं सिद्धान्तं व्रजंतं शुभनन्दिभट्टारकपार्श्वे श्रुत्वा ज्ञात्वा च वप्पदेवनामा मुनीन्द्रः प्राकृतभाषया अष्टसहस्रप्रमिता टीकां करिष्यति"। इतिहासके पृष्ठ १९२ पर दूसरे विद्वानोंके कथनानुसार तुम्बुदराचार्य और श्रीवर्द्धदेवको एक व्यक्ति मानकर जो यह प्रतिपादन किया १ 'आदि' शब्दसे 'नागहस्ति' आदि जिन चार आचार्योका यहाँ अभिप्राय है उनमेंसे 'आर्यमंक्षुका नाम इस 'श्रुतावतार में नहीं दिया, तीसरे 'यतिवृषभ' का नाम 'यतिनायक' और चौये उच्चारणाचार्यका नाम 'समुद्धरण' मुनि बताया है।

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