Book Title: Swami Samantbhadra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 202
________________ समय-निर्णय । १९३ 'आर्यदेव, ' आर्यदेवके पश्चात् गंगराज्यका निर्माण करनेवाले 'सिंहनन्दि' आचार्य और सिंहनन्दिके पश्चात् एकसंधि 'सुमति भट्टारक' हुए । इनके बाद 'कमलभद्र' पर्यंत और भी कितने ही आचायॊके नामों तथा कहीं कहीं उनके कामोंका भी क्रमश: उल्लेख किया है । इस शिलालेखका कुछ अंश इस प्रकार है "....श्रीवर्द्धमानस्वामिगल तीथं प्रवर्तिसे गौतमर्गणधरर एने त्रिज्ञानिगल अप्प मुणिगल सलेय् अवरिं चतुरंगुलऋद्धि प्राप्तर एनिसिद कोण्डकुन्दाचार्यरिं केलव-कालं योगे भद्रबाहुस्वामिगलिन्द् इत्त कलिकालवर्तनेयिं गणमेदं पुट्टिदुद् अवर अन्वयक्रमदि कलिकालगणधरु शास्त्रकर्तुगलुम् एनिसिद समन्तभद्रस्वामिगल अवर शिष्यसंतानं शिवकोट्याचार्य्यर अवरिं वरदत्ताचार्य्यर् अवरिं तत्वार्थसूत्रकर्तुगल एनिसिद् आर्य्यदेवर अवरिं गंगराज्यमं माडिद सिंहनन्याचार्य्यर् अवरिन्द् एकसंधिसुमतिभट्टारकर अवरिं । ....-" ___ इस लेख परसे यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि जिन सिंहनन्दि आचार्यका गंगराज्यकी संस्थापनासे सम्बंध है वे समन्तभद्रस्वामीके बाद हुए हैं। यद्यपि, इस शिलालेखमें कुछ आचार्योंके नाम आगे पीछे क्रमभंगको लिये हुए भी पाये जाते हैं जिसका एक उदाहरण भद्रबाहुस्वामीको कुन्दकुन्दसे कुछ काल बादका विद्वान् सूचित करना हैऔर इसलिये आचार्योंके क्रमसम्बंधमें यह शिलालेख सर्वथा प्रमाण नहीं माना जा सकता; फिर भी इसमें सिंहनन्दिको समन्तभद्रके बादका १ सिंहनन्दिके इस विशेषण 'गंगराज्यमं माडिद' का अर्थ लेविस राइसने who made the Ganga Kingdom दिया है-अर्थात् यह बतलाया है कि 'जिन्होंने गंगराज्य का निर्माण किया,. (वे सिहनन्दी आचार्य)। १३

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