Book Title: Swami Samantbhadra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ समय-निर्णय । द्वलि, माघनंदि और धरसेनादिकका समय भी शामिल किया जा. सकता है; क्योंकि त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें अंगपूर्वैकदेशधारियोंके कोई खास नाम नहीं दिये, प्राकृत पट्टावलीमें इनके समयकी गणना एकांगधारियोंके समय ( ५६६ से ६८३ तक ) में ही की गई है-अथवा यों कहिये कि इन्हें ही एकांगधारी बतलाया है-, नन्दिसंघकी 'गुर्वावली में माघनन्दीको 'पूर्वपदांशवेदी' लिखा है * और 'श्रुतावतार' में अर्हद्वालि, माघनन्दी तथा धरसेन नामके आचार्योंको अंगपूर्वोके एकदेशज्ञाता सूचित किया है ४ । इसके सिवाय, श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं० १०५ से, जिसके पद्य ऊपर उद्धृत किये गये हैं, मालूम होता है कि पुष्पदन्त और भूतबलि अहद्वलिके शिष्य थे। इन्हीं पुष्पदन्त और भूतबलिको धरसेनने अपनी मृत्यु निकट देखकर बुलाया था और कर्मप्राभूत शास्त्रका ज्ञान कराया था। इससे अहद्वलि, माघनन्दि, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबाल, ये सब प्रायः एक ही समयके विद्वान् मालूम होते हैं। यह दूसरी बात है कि इनमेंसे कोई कोई एक दूसरेसे कुछ वर्ष पीछे तक भी जीवित रहे हैं, और समकालीन विद्वानों में ऐसा प्रायः हुआ ही करता है। बाकी 'ततः' 'तदनन्तर' आदि शब्दोंके द्वारा जो इन्हें कहीं कहीं एक दूस* यथा-'श्रीमूलसंघेऽजनि नन्दिसंघस्तस्मिन्बलात्कारगणोतिरम्यः । तत्राभवत्पूर्वपदांशवेदी श्रीमाषनन्दी नरदेववंद्यः ॥ x यथा-"सागपूर्वदेशैकदेशवित्पूर्वदेशमध्यगते। श्रीपुण्ड्रवर्धनपुरे मुनिरजनि ततोऽईद्वख्याख्यः" ॥ ४५ ॥ "तस्यानन्तरमनगारपुंगवो माघनन्दिनामाभूत् । सोप्यंगपूर्वदेशं प्राकाश्य समाधिना दिवं यातः" ॥१२॥ "अप्रायणीयपूर्वस्थितपंचमवस्तुगतचतुर्थमहाकर्मप्राभूतकशः सूरिधरसेननामामूत्" ॥१०॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281