Book Title: Surya Siddhant Author(s): Baldevprasad Mishra Publisher: Gangavishnu Krishnadas View full book textPage 6
________________ सूर्यसिद्धान्तकी भूमिका | (५) गणित - ज्योतिषमें सूर्यसिद्धान्तका नाम अत्यन्त विख्यात है । भारतवर्षके अधिक पंचांग इसी ग्रंथसे बनते हैं, और इसीके अनुसार हमारे सारे व्यवहार हुआ करते हैं । इस कारण प्रत्येक विद्वान्को ऐसे ग्रंथके देखनेकी इच्छाका होना कुछ असम्भव नहीं है। बहुत से मनुष्य कहा करते हैं कि सूर्यसिद्धान्त यहांतक कठिन है कि, इसका पढना पढाना अधिकारसे बाहर पाँव रखना है । गणितशास्त्र में साधारण अधिकारके साथ २ क्रमशः प्रवेश करना कुछ कठिन बात नहीं है । निःसन्देह अंकपात बहुत करने पडते हैं सो वहभी दुरारोह नहीं है । नये पढनेवालों के लिये तो संज्ञाज्ञानही वास्तव में कठिन है । उदाहरणके साथ ग्रंथका पढना बहुत ही लाभकारी है। जहां दो एक विषय आगये, बस फिर और विषयोंका समझमें आना कुछ कठिन नहीं रहता । पश्चात् करण ग्रंथोंकी स्वयं ही निर्देश करदी जा सकेगी और मूलमें पूर्णाधिकार होजायगा। अब यही निवेदन है कि जो पहली पहल कठिन समझपडे, तो आप इसका पढना छोड़ें नहीं, बरन् बराबर देखे जाँय । जहां कहीं कठिन ज्ञात हो वहीं पर दो चार बार दृष्टि डालजाओ, अवश्य सरलता - पूर्वक जान जाइयेगा । यदि पहले करणग्रन्थ पढलिये जॉय दो सुभीता है । गणना के समय में साधारणता विकला के नीचे सूक्ष्माङ्कका प्रयोजन नहीं है. और बहुत से विषयों में तिसको छोडदेन से भी कुछ हानि लाभ नहीं । गवर्नमेंट के अनुग्रहसे, स्वदेश वासियोंके अनुरागसे, धनी व धर्मात्मा पुरुषों की मार्थिक सहायता से प्रतिवर्ष सहस्रों विद्यार्थी लोग अंकशास्त्रमें प्रवीण होते हैं । आ शा की जाती है कि इनमेंसे अनेक विद्यार्थी लोग निजदेशकी अंक विद्या और ज्योतिविद्यापर ध्यान देंगे इस ग्रन्थ में १४ अध्याय हैं । इनके मध्य १ अध्याय में - ग्रन्थारंभ, कालविभाग, युगमान, दिनसंख्या, बहर्गण, भगणादि ग्रहांका मध्य, मन्दोच्च और शीघ्र, देशान्तर परमविक्षेपादि हैं । २ अध्यायमें - ग्रहगतिका कारण, गतिप्रकार, ज्यानिर्णय, क्रांति और केन्द्रसाधन मुज और कोटोसे परिधि करके फलादि निर्णय ' ग्रहस्पष्ट, भुजांतर संस्कार, स्पष्ट गति, स्पष्टविक्षेप, अहोरात्रमान, चर, तिथि, नक्षत्र, योग, करण हैं । ३ अध्याय में - पूर्व पश्चिम रेखा निर्णय, अयनांश, विषुवद्भा, लम्बज्या, · नत्यानयन, मग्राकोणशङ्कु, निरक्ष राशिमान, लग्न, दशम हैं । ४ अध्यायमें - स्पष्ट, चंद्र, छाया और सूर्यका मान, ग्रास, स्थिायर्द्ध, कोटि, बलनांश है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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