Book Title: Suri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta
Author(s): Hansvijay
Publisher: Rajendra Jain Seva Samaj

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Page 264
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५) श्रीश्वेताम्बर-जैनपाठशाळाओं में गाने योग्य श्रीजिनेन्द्रदेव-प्रार्थना.। अये प्रभो! आनन्द दाता, ज्ञान हमको दीजीये । एदेशी ।। प्रये अमन्दानन्द दायिन् !, हे जिनेश ! दया करें। पाल हम हैं आपके सच्चरणकञ्ज हि में परें ।। टेक ॥ तीर्थकर-परमेष्ठि-अर्हन्स्यादवादी सुकेवली । पारगत-क्षीणाष्टकमोऽभयद-प्राप्त-अतुलबली॥०॥१॥ वीतराग-त्रिकालवित देवाधिदेव है बोधिद । सर्वदर्शि-निरीह-सर्वज्ञ-इन्द्रसेवित सत्पद ॥ ७० ॥ २ अगद् बन्धो ! मात-पितु-गुरू-देव-मित्र हि आप हैं। . शरण वत्सल हैं विभो !, अर्जी सुनें निष्पाप हैं ।म०॥३॥ नैतिक-ज्ञातीय-धार्मिक-दैशिक- व्यवहारिकी । करें सुधारा समुन्नति हो, ज्ञानमति अनुमारिकी ॥१०॥४॥ क्यता उद्योगिता, उत्साहिता सामर्थ्यता ।। सदाचारी हम बनें, भैसी करें सुसहायता ॥ १० ॥५॥ अन्तरङ्गारातिक्षय हो, आपकश्रेणी-भावना । मरिभपेन्द्रानन्त लक्ष्मी-धाम हो यही प्रार्थना ॥ १०॥६॥ For Private And Personal Use Only

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