Book Title: Suri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta
Author(s): Hansvijay
Publisher: Rajendra Jain Seva Samaj

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Page 265
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनः-प्रार्थना.. त्रोटक-छन्दसि-- जय मंगलमाल विशाल नमो, जिनराज समाज सुतारक हो । शरणागत बाल प्रभो! हम हैं, भवसागर-पार उतारक हो ॥ ज० ॥टेक ॥ तिय लोकइने हित-पूरक हो, नर-नागसुरेन्द्र-सुसेवित हो । तिय-ताप-समावन-धारिद हो, मृति-- जन्म-गमा-ऽऽगम-चूरित हो ॥ ज० ॥१॥ विभु हो सुफ्ती हमको सुकृती, सुनती सुमती सुयती करि हो । सुगती सुथिती सुरती धरि हो, जगभूषण ! क्षणको हरि हो ॥ ज० ॥२॥ गुरू--देव गुणी पितु--मातन के चरणां विच नम्र सदा शिर हो ! विनयी कुशली रु सदाचरणी, करिहो हमको सुद..माऽऽकर हो ॥३॥ शुध लेखन वाचन भाषन के, अभिजाण सदा सतसंगम हों । यह सरिभूपेन्द्र सुनें विनती, सबके मनमावनही हम हों ।। ज० ॥ ४॥ For Private And Personal Use Only

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