Book Title: Suri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta
Author(s): Hansvijay
Publisher: Rajendra Jain Seva Samaj
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( ५७ ) पुनः प्रार्थना गुजराती भाषा में ।
गजल-कव्वाली। " विनय विद्या प्रमारामां प्रभुजी सर्वदा भरजो, सुशील शाणा सदाचारी प्रमोने ईश्वरा करजो ॥" [ टेक ] अमें नाना भूलो करिये नहीं ते ध्यानमा घरजो, गयी बालक क्षमा करजो प्रभु अमने न परिहरजो ॥ वि०॥१॥ अनीति पाप ने मस्ती प्रमारां दुर्गुणों हरजो, नीति भक्ति प्रीति निशदिन हृदय निर्दोषता भरजो । अमारी भावना बुद्धि बधी निर्मल प्रभु करजो, रूडी वाणी रहूं वर्तन विचारो पण रूडां भरजो ॥ वि० ॥२॥ अमोने तन वचन मनथी मीठा बोला प्रभु करजो, प्रभु भक्ति पिता भक्ति गुरु भक्ति उरे भरजो । सदा साचूं वर्दू स्वामी करो तो एटलुं करजो, भरो तो संप सादाई अने सन्तोषता भरजो ॥ वि०॥ ३॥ नथी निर्बल थर्बु अमने शूरा ने सद्गुणी करजो, खुवो जे जे भूलो भगवान नहीं ते ध्यानमा घरजो । प्रभु पुत्रो में ताहरां कृपा दृष्टि पिता करजो, निरन्तर चरणमा नमिये विनंती ध्यानमा घरजो ॥ वि० ॥ ४ ॥
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