Book Title: Suri Viharadarsh Ane Tharadni Prachinta
Author(s): Hansvijay
Publisher: Rajendra Jain Seva Samaj

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Page 267
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५८) हमेशाहू 'व' पौष-शुदि ७ के दिन 'गुरुजयन्ती' के महोत्सव पर गुरुगुणस्मृति व गुणप्रार्थनारूपपाठशालाभों में गाने योग्य गायन । अये प्रभो ! आनन्ददाता • इस राहमें । अये गुरो ! राजेन्द्रसरे ! बाल हमको तारीये । शरण में हैं आपकी. पा....ये हमें उद्धारीये । टेक ।। ज्ञान-दरसन चरण-तप-जप-सुगुणी-सन्तोषी बने । व्यसन-कुविषयदुर्गुणों, औ दुष्टकर्मों को हने ।। अ० ॥२॥ धैर्य-शौर्य औ....दार्य सतसंग, शील गंभीरता धेरै । संप-नय-विनयी विवेकी, प्रेम कौशलता वरें। अ० ॥२॥ आपके पावन-गुणानु ....वाद के भाषण गरें । सममी दिन संघ हर्षित, हो जयन्ती ऊजमें ॥ १० ॥ ३ ॥ आपकी संघ फूलवाड़ी, विलस रही है सर्वदा । दरस देकर मन लुभा कर, आप वि. छडे थे यदा । अ० ॥ ४ ॥ अये! सुरीली मूर्ति के, आशिक हमें खुश कीजीये । रटन करते हैं सदा, सद्बुद्धि हमको दीजीये ॥ १०॥ ५॥ दयासिन्धो ! सद्गुरो ! नित, हो यही है प्रार्थना । सूरि-भूपेन्द्र-शासने यश:-पटह-वाघ समर्थना ॥ १० ॥६॥ For Private And Personal Use Only

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