Book Title: Supasnaha Chariyam
Author(s): Lakshmangani, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 12
________________ C पुरुच पुय०। जयर्थममिसा सया सहइ ॥३९॥ तस्स य सारयच्छणससिसमवयणा मयणकंदली दइया । नियनिरुवमसुंदेरिमअहरीकयकुसुमसरपरिणी ॥४०॥ चिरचिन्नपुन्नपन्भारपरिणयं तीए सह नियो निच्चं । भुजंतो विसयसुहं सुहेण वोलेइ बहुकालं ॥४१॥ अह अन्नया य सेवासमागया| संसमंतिसामते । कयजहुचियसम्माणे संझावसरे विसज्जे ॥४२॥ कयदेवपायपूयापहणियनीसेसविग्यसंघाओ। संभाविऊण सब्भावनिम्भरं किंपि नियदइयं ॥४३॥ विमलच्छवेत्थपच्छाइयाए सुरसरियपुलिणपिहुलाए । मिउसुहुमहंसतूलोवहाणकलियाए सेज्जाए ॥४४॥ निद्दामहामिलियच्छिसंपुडो जाव वासभवणम्मि। निविडीकयदारकवाडसंपुडो चिटइ निसीहे ॥४५॥ ताव सहसचि निद्दासम्मढुवमद्दविहडियच्छिपुडो। पिच्छइ पुरओ रमणिं तणुप्पहापयतमपडलं ॥४६॥ चरणारविंदभममिलियमुहलभसलावलिंब वहमाणि । मरगयमणिमयमलधाराजलेन चित्राणि रिपुचरित्राणि । यः स्पृशति भुवनभवनान्तरालभित्तिनिहितानि ॥३८॥ यस्य च यशोजलसिक्कं प्रतापपावकपर्यस्तमवनितलम् । नवकन्दलकलितमिव जयस्तम्भमिषात्सदा राजति ॥३९॥ यस्य च शारदक्षणशशिसमवदना मदनकन्दली दयिता । निजनि-118 रुपमसौन्दर्याधरीकृतकुसुमशरगृहिणी ॥४०॥ चिरचीर्णपुण्यप्राग्भारपरिणयं तया सह नृपो नित्यम् । भुञ्जानो विषयसुखं सुखेनातिकामति | बहुकालम् ॥४१॥ अथान्यदा च सेवासमागताशेषमन्त्रिसामन्तान् । कृतयथोचितसम्मानान् सन्ध्यावसरे विसृज्य ॥४२॥ कृतदेवपाद| पूजाप्रहतनिःशेषविघ्नसंघातः । संभाव्य सद्भावनिर्भरं किमपि निजदयिताम् ॥४३॥ विमलाच्छवस्त्रप्रच्छादितायां सुरसरित्पुलिन - | धुलायाम् । मृदुसूक्ष्महंसतूलोपधानकलितायां शय्यायाम् ॥४४॥ निद्रामुद्रामिलिताक्षिसंपुटो यावद् वासभवने । निबिडीकृतद्वारकपाटसंपुटस्तिष्ठति निशीथे ॥१५॥ तावत् सहसेति निद्रासंमर्दोपमर्दविघटिताक्षिपुटः । पश्यति पुरतो रमणीं तनुप्रभातहततमःपटलाम् ॥४६॥ चर क.ग. पच्छ । २ क. सिद्धार । कन्कन्सन JanEduri nations For Personal & Private Use Only nbrary.org

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