Book Title: Supasnaha Chariyam
Author(s): Lakshmangani, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 14
________________ . १०च० | पुचः। maACHAR पवित्तिय पायपउमेहि ॥५५॥ पसरंतदंतकिरणालिदलियतिमिरं पयंपियं तयणु । सुअणु! तए नियजम्मेण भूसिया कहसु का जाई | | ॥५६॥ का य तुह नामवण्णावली विभूसेई लोयवयणाई ? कैण व कज्जेण गिह पवित्तिय चरणफुसेण ?॥२७॥ इय वहुमाणपुरस्सरणरवइजुत्ताभिभासणपहिहा। सा पभणइ निवपुंगव ! जइ सुस्मूसा तुह इहत्थे ॥५८॥ ता होसु सावहाणो खणमेगं जेण तुझ अहुणावि । पयडेमि पुचपुढे सवित्यरं, तो इमं कहइ ॥५९॥ अत्थि ससिकंतमणिसालचंगिमासमियसग्गसोहग्गं । असदवियड्ढमहिइढियनरकलियं रयणसारपुरं ॥६०॥ तं पालइ पोढपयावजलणजालावलीहिं सयकालं । जलियदरियारिवंसो राया संगाममूरोत्ति ॥११॥ तस्स य समग्गसोहनापमुहगुणगामगामणी दइया । रइरमणगेहिणी इव नामेणं चंदलेहत्ति ॥२॥ अवरुप्परपीइपरायणतकरणाण ताण सयकालं । अन्नोनअमंदाणंदमंदिरा वासरा जति ॥६॥ अह अन्नया य सह सहयरीहिं पासायसिहरमारूढा । जा चिट्ठइ ता पिच्छइ पवित्रितं पादपद्माभ्याम् ॥६५॥ प्रसरहन्तकिरणालिदलिततिमिरं प्रजल्पितं तदनु । सुतनु ! त्वया निजजन्मना भूषिता कथय का जातिः ? ॥५६॥ का च तव नामवर्णावली विभूषयति लोकवदनानि ? । केन वा कार्येण गृहं पवित्रितं चरणस्पर्शेन ?॥५७॥ इति बहुमानपुरस्सरनरपतियुक्तामिमाषणप्रहृष्टा । सा प्रभणति नृपपुव ! यदि शुश्रूषा तवेहार्थे ॥५८॥ ततो भव सावधानः क्षणमेकं येन तवाधुनापि । प्रकटयामि पूर्वपृष्टं सविस्तर, तत इदं कथयति ॥१९॥ अस्ति शशिकान्तमणिसालचङ्गिमाअमितस्वर्गसौभाम्यम् । अशठविदग्धमहर्दिकनरकलितं रत्नसारपुरम् ॥६०॥ तं पालयति प्रौढप्रतापज्वलनज्वालावलीमः सदाकालम् । ज्वलितहप्तारिवंशो राजा संग्रामशूर इति ॥६१॥ तस्य समग्रसौभाग्यप्रमुखगुणग्रामणीर्दयिता । रतिरमणगेहिनांव नाम्ना चन्द्रलेखेति ॥१२॥ परस्परप्रीतिपरायणान्तःकरणयोस्तयोः सदाकालम् । अन्योन्यामन्दानन्दमन्दिराणि वासरा यान्ति ॥१३॥ अथान्यदा च सह सहचरीमिः प्रासादशिखरमारूढा । यावत् तिष्ठति तावत् । CCCCCCC ONORA | ॥४॥ A in Educa For Personal & Private Use Only A lainelibrary.org

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