Book Title: Supasnaha Chariyam
Author(s): Lakshmangani,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
किपि भास तो तुझ मह सत्रहो ॥१५८॥ इय गुरुनिन्वंघेणं भणिया सा रंघिऊण मुहिगाए । मह देइ भोषणं नियगिहम्मि भुतुतरेय अहं ॥१५॥ जा मायंगस्स गिई वच्चामि सुणेमि ताव अक्कंदं । तो तस्सन्निहियजणा पुट्ठा तक्कारणं तेहि ॥१६०॥ कहियं, जह मा-16पुब। संगो जस्स सावम्मि आगो तं सि । सो संपइ मूविमइयाए पंचत्तमणुपत्तो ॥१६१॥ इय सोउँ विमणपणो अहयंतं सिटिणीए कहिऊणं । जा नियनयगभिमुहं चलिओ तो तीए इय भणिओ ॥१६२॥ जह बीयदिणं चिट्ठसु इहेब काऊण बंधव ! पसायं । चेइहराई बंदसु तह पाहुणमो य मे होनु ।।१६।। इस अइनिव्वंयपरं तीसे वयणं निसामिऊणमए। पडिवज्जियं तहच्चिय एचो दुइयम्मि दिवसम्मि ॥१६॥ किविणपियामहसिट्टी तीए मंतून हउवविद्यो। भणिो जह मह बंधू भुजिही अज्ज तुह गेहे ॥१६५॥ बा सालिदालिममुबंधसप्पिपभीइ समपत्ति तो । मिट्ठी वयभिक्षुहं भणइ अंजिही कह णु तुह वंध? ॥१६६॥ देसागोवि अइथिओवि मम शपथः ॥१५८॥ इति मुरुनिवन्धेन गणिता सा रन्धित्वा मुषा । मम ददाति मोजनं निजगृहे, मुक्त्वा त्वस्याहम् ॥१५९॥ याक्मा
वास्य गृहं बनामि शृणोमि सदाक्रन्दम् । ततस्तत्संनिहितजनाः पृष्टास्तत्वारणं तैः ॥१०॥ कथितं, यथा मातङ्गो यस्य समीप आगतहा स्तमास । स संप्रति मूडविचिकया पश्चत्तमनुप्राप्तः ॥१९॥ इति श्रुत्वा विमनोमना बहकं तत् श्रेष्ठिन्यै कथयित्वा । यावन्निजक्यराभिमुखं शालितस्ततस्तयेति माणितः ॥११॥ यथा द्वितीयादिनं तिष्ठहैव कृत्या वान्धव ! प्रसादम् । चैत्यगृहाणि क्न्दस्य तथा प्राघुणकब मम भव
॥१६॥ इत्यतिनिबन्धपरं तस्या वचनं निशम्य मया। प्रतिपनं तथैवेतो द्वितीयस्मिन् दिवसे ॥१६॥ कृपणपितामहश्रेष्ठ तया बस्या हो-18॥ पविष्टः । मणितो यथा मम मनमोस्यतेऽव तब गेहे ॥१९॥ तस्माच्छालिसूपसुसुगन्धसर्पिःप्रभृति समर्पयेति ततः । श्रेष्ठी तदमिनुखं मणति || १९खनारमा वि।
॥१०॥
DOORoad
Jain EMI I
national
For Personal & Private Use Only
स
jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 ... 430