Book Title: Supasnaha Chariyam
Author(s): Lakshmangani,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
कसिंगारं नयरलोयं ॥६४॥ अंकनिवेसियनियनियपुत्तयपडिपुत्तनत्तपुत्तीयं । विविहफलफुल्लपरिकलियपडलियावावडकरग्ग।।६।। कुसुमावयंसगाभिहउज्जाणेऽणंगतेरसिदिणम्मि । गच्छंतं कुसुमाउहपयजुयलसमञ्चणनिमित्तं ॥६६॥ तम्मज्झट्टियवहुविहरयणाहरणेहि
भूसियसरीरं । पिच्छइ कमलायरमंतिपणइणि लडहलायण्णं ॥६७॥ सोहगमडप्फरहेरियकामघरणिं सुहासणासीणं । अंकनिवेसियदुHI हियं लालित विविहभंगीहिं ॥६८॥ तं पिच्छिऊण संगामसूरनरनाहपणइणी सहसा । ससहरकरचुंबियकमलिणिव्व दीणाणणा
जाया ॥६९॥ पाउन्भवंतनिम्मेरमन्नुभरभारनीसहा तयणु । कोवभवणम्मि जरजिन्नसिक्कडे पडइ जरियव्व ॥७०॥ चिंतइ नियवालाए विभूसियाणंगतेरसिदिणम्मि । जा एवं विलसइ मंतिपणइणी सच्चिय कयत्या ॥७॥ विहलो चिय मह महिलाजम्मो कंकेल्लितरुलयाएव्व । जीए सुयपसवफलणेण पावियं नेय जम्मफलं ॥७२॥ ता कहणु सलहणिज्जा पियमाणसफुरणरायहसीवि । होमि पश्यति कृतशङ्गारं नगरलोकम् ॥६॥ अङ्कनिवेशितनिजनिजपुत्रकप्रतिपुत्रनप्तृपुत्रीकम् । विविधफलपुष्पपरिकलितपटलिकाव्यापृतकराग्रम् | ॥६५॥ कुसुमावतंसकामिघोद्यानेऽनङ्गत्रयोदशीदिने । गच्छन्तं कुसुमायुधपदयुगलसमर्चननिमित्तम् ॥६६॥ तन्मध्यस्थितबहुविधरत्नाभरणभूपितशरीराम् । पश्यति कमलाकरमन्त्रिप्रणयिनी सुन्दरलावण्याम् ॥६७॥ सौभाग्यगर्वाधरितकामगृहिणिकां सुखासनासीनाम् । अङ्कनिवेशितदुहितरं लालयन्ती विविधमनिमिः ॥६८॥ तां दृष्ट्या संग्रामशूरनरनाथप्रणयिनी सहसा । शशधरकरचुम्बितकमलिनीव दीनानना जाता | ॥६९॥ प्रादुर्भवन्निमर्यादमभ्युमरभारनिःसहा तदनु । कोपमवने जराजर्णिसीत्कटे पतति ज्वरितेव ॥७०॥ चिन्तयति निजबालया विभू| पिताऽनङ्गत्रयोदशीदिने । यैवं विलसति मन्त्रिप्रणयिनी सैव कृतार्था ॥७१।। विफलमेव मम महिलाजन्म कङ्कल्लितरुलताया इव । यया
१. डरिय।२ क. ख. लालति ।
For Personal Private Use Only

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 430