Book Title: Sulsa Charitam Author(s): Harishankar Kalidas Shastri Publisher: Jain Vidya Shala View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००० हृदयवाला पुरुषोनुं पण मलीनपणुं तत्काल नाश पामे , एवा अगस्त्यना ताराना सरखा निर्मल ते चारित्रप्रन नामना श्राचार्यनी श्रमे उपासना (सेवा). करीए॥ बीए. ॥ ए ॥ जे उन्नतिने पामीने गाढ स्वरथी गर्जना करता बता तत्काल ऋण || लब्ध्वोन्नतिं 'ये गुरुगर्जिवंतो, 'विश्वोपतापं सदसा हरंति ॥ पैरार्थमेवेद केतावताराः, 'संतः पयोदा इव "ते जयंति॥१०॥ ___ कवि, मूर्ख लोकोने श्रा काव्य संजलाववानी ना पाडे जे. मुखेन 'ये दोषविषं वैमंति, परस्य रंध्राणि सदा विशंति॥ देशति मर्माणि नयंकराह्वस्तेि वर्जनीया इंटिति "विजिह्वाः॥११॥ जगतना तापने हरण करे बे, वली परोपकारने माटे ज पालोकमां धारण कस्यो , अवतार जेमणे एवा मेघना सरखा ते संत पुरुषो जयवंता वर्ते हे. ॥ १० ॥ जे मु १ आश्लोकमां अगस्त्यना तारानी उपमा आपीछे, तेनो हेतु एवो छ के, ते ताराना किरणधी पाणी निर्दोष (निर्मल) थाय छे. पण एवो अर्थ करती वखते "जडाशयानां" एपदमा "ड" ने बदले "ल" समजवो. For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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