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सुलसा०
॥ १ ॥
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सर्ग १ लो.
द कवि सुलसाचरित्रनो यारंभ करवा पहेलां तेणीना देश, गाम, राजा पति विगेरेनुं वर्णन करे ठे.
समुनी मध्यमां प्राप्त ( ग्रहण ) कस्यो बे जन्म जेणे अर्थात् समुद्रनी मध्यमां | रहेलो, सम्यक् चारित्रवाला लोकोवडे मनोहर ( उत्तम गोलाकारथी सुशोजित ), मधुर शब्दवाला पुरुषोनुं उत्पत्ति स्थान ( मधुर शब्दोनुं उत्पत्ति स्थान ), देवतार्जए ( उपजाति वृत्तम् )
रेत्नाकरांतः परिलब्धजन्मा, सुवृत्तशाली कैलशब्दभूमिः ॥ लेखानिरामो नैवधाम कंबूपमो भुवि दीपवरोऽस्ति जंबूः ॥ २ ॥
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| करीने मनोहर ( रेखाए करीने मनोहर ), तेम ज नवीन तेजवाला दक्षिणावर्त्त शंखना जेवो, पृथ्वीने विषे जंबू नामनो श्रेष्ठ द्वीप बें ॥ १ ॥
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सर्ग लो.
॥ ५ ॥