Book Title: Sulsa Charitam Author(s): Harishankar Kalidas Shastri Publisher: Jain Vidya Shala View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir roखपी दोष रूप केरने वमे , हम्मेशां पारकां बिछ प्रत्ये पेसे ने अर्थात् पारका प्रस्ताव लिख जुए डे श्रने मर्मस्थानने मसे ले अर्थात् फुःख उत्पन्न थाय तेवां कायोंने || Mal करे बे एवा जयंकर नामवाला ते सपों (चाडिया पुरुषो) तत्काल त्याग करवा. ॥ ११॥ हवे संत कोने कहेवा ? अने मूर्ख कोने कहेवा ? ते माटे कवि संत । श्रने मूर्खना गुण-दोष देखाडे . ते एव संतोऽत्र निरस्य दोषान्, ये नूंषयंत्यन्यजनस्य काव्यम् ॥ "तेर्जना"ये "विमलेपि काव्ये, गण्टंति रोषादसतोऽपि दोषान् १२ अहिं तेज संत पुरुषो जाणवा के, जे दोषोनो त्याग करीने अर्थात् का ॥३॥ व्यमां रहेला दोषोने सुधारीने अन्य मनुष्ये करेला काव्यने शोजावे डे अने ते उऊन जाणवा के, जे निर्मल एवा य पण काव्यने विषे दोष न बतां पण दोषोने ll क्रोधी ग्रहण करे . ॥ १५ ॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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