Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala
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सुलसा |शास्त्र ( न्यायशास्त्र), द्वादशांगी विगेरेशागम अने चंसोदय विगेरे नाटकनो श्रज्ञा |
प्रस्ताव नी, सूक्तावलि विगेरे साहित्य विनानो, नीतिनो अजाण, व्याकरणनो अजण श्रने ॥४॥|चूडामणि विगेरे अलंकारनो अज्ञानी तेम ज काव्य करवानी श्छा करतो एवो हुँ क
कवि, ग्रंथ करवानुं कारण देखाडे . न वादबुझ्या ने विनोदबुझ्या, ने वित्तहेतोर्न , कीर्तिदेतोः॥
संसारनिस्तारपरोपकारकते करोम्येष कवित्वमेतत् ॥१५॥ हवे संसारथी मुक्त श्रवानो उपाय शुंडे ? अने ते केटला प्रकारनो ने ? ते कहे .
अपारसंसारसमुपारकर्ता तु धर्मः "शिवसूत्रधारः॥
दानादिनेदैर्जगदेऽत्र सारस्तीर्थकरैरेष चतुष्प्रकारः॥ १६॥ विना हास्य (मश्करी)ना स्थान रूप थश्श.॥ १४ ॥ काव्य करनार हुँ था काव्य ॥४॥ संसारनी निवृत्ति रूप परोपकारने माटे करूंढुं, परंतु ए काव्य वादबुद्धिथी, विनोदबु । जिथी,अव्यने माटे के कीर्तिने माटे करतो नथी. ॥१५॥ तीर्थंकरोए, श्रालोकने विषे ।।
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