Book Title: Sulsa Charitam
Author(s): Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidya Shala

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ श्रपार एवा संसार समुज्नो पार पमाडनार, वली मोदना श्रध्यक्ष श्रने सार रूप श्रा जैनधर्म दानादि ( दान, शील, तप अने नाव एवा) नेदे करीने चार प्रकारे कहेलो .॥१६॥श्रालोकने विषे ऽव्य विना दान केम थाय? अर्थात् अव्य विना दान थई || हवे दान, शील, तप अने नाव ए चारमा मुख्य शुं ? ते कहे . 'विना धनं स्यात्कथमत्र दानं, सुंर्वदं शीलमथोह्यमानम् ॥ शैरीरशक्त्यैव तैपोविधानं, तनावमेवाद्दुरदःप्रधानम् ॥१७॥ हवे नाव, मूल शुंने ? ते कहे . तत्रापि नावे प्रवदंति मूलं, सम्यक्त्वमेव व्रतसानुकूलम् ॥ "सिध्यंति चारित्रनृतोऽपि यस्मात्सम्यक्त्वहीना नैं पुनः कैंदापि ॥१॥ शकतुं नथी. वली अंगीकार करेलु शीलवत पालवू ए घणुं ज अशक्य , तेम तपर्नु थाचरण पण शरीरनी शक्तिवडे ज थाय . माटे विछान लोको दान, शील, तप, lal अने नाव ए चारमा नावने ज मुख्य कहे जेः ॥१७॥ते नावने विपे पण व्रते करीने | For Private and Personal Use Only

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