Book Title: Stutividya
Author(s): Samantbhadracharya, 
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 177
________________ १३४ समन्तभद-भारती प्रधानः इनः स्वामी नत्येकेनः तस्य सम्बोधनं हे नत्येकेन । रुजया रोगेण ऊनः रुजोनः तस्य सम्बोधनं हे रुजोन । सज्जनानां पतिः सज्जनपतिः तस्य सम्बोधनं हे सज्जनपते । नन्दन् श्रानन्दं कुर्वन् । अनन्त अविनाश । अवन रक्षक । नन्तन स्तोतृन् । हानेन क्षयेण विहीनं ऊनं हानविहीनं धाम तेजः हानविहीनं च तत् धाम च हान. विहीनधाम,हानविहीनधामैव नयनं यस्यासौ हानविहीनधामनयनः स्वम् । नः अस्मान् । स्तात् भव । पुनन् पवित्रीकुर्वन् । हे सज्जिन शोभनजिन । एतदुक्तं भवति-हे भट्टारक नष्टाज्ञान नम्र जनं पान् रिपूनप्यालुनन् नन्तृन् नन्दन् नः अस्मान् पुनन् हानविहीनधामनयनस्त्वं स्तात् । शेषाणि सर्वाणि सम्बोधनान्तानि पदानि अस्यैव विशेषणानि भवन्तीति ॥११॥ अर्थ-भगवन् ! आपका अज्ञान नष्ट हो गया है, आप कर्ममलसे रहित हैं, जैनशासन अथवा अप्रतिहत आज्ञाके स्वामी हैं, मूर्छादिक परिग्रहसे रहित हैं। आपका ज्ञान अत्यन्त शोभायमान है,आप अत्यन्त पवित्र हैं, प्रकाशमान हैं,नमस्कार के मुख्य स्वामी हैं-इन्द्रादि सब प्रधान पुरुष आपको ही नमस्कार करते हैं । आप रोगरहित हैं, सज्जनोंके अधिपति है, अन्तरहित हैं, रक्षक हैं, अथवा अनन्त प्राणियों के रक्षक हैं और उत्तम जिनेन्द्र हैं । हे प्रभो ! आप नम्र मनुष्योंकी रक्षा करते हुए, काम-क्रोध आदि अन्तरङ्ग शत्रु ओंको नष्ट करते हुए, नमस्कार करनेवालोंको समृद्धसम्पन्न करते हुए और मुझ समन्तभद्रको पवित्र--राग. दषसे रहित-करते हुए चिरकाल तक हानिविहीन केवलसान-लोचनसे युक्त तिष्ठे॥१११।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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