Book Title: Stutividya
Author(s): Samantbhadracharya, 
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 192
________________ स्तुतिविद्या पढ़नेसे क्रमशः द्वितीय-चतुर्थ चरण बन जाते हैं। इसी प्रकारके श्लोक नं०८३, ८, ६५ हैं। .. (४) गर्भ महादिशि चैकादरश्चतुरक्षरश्चक्रश्लोकः . नन्धनन्तद्धर्थ नन्तेन नन्तेनस्तेभिनन्दन । नन्दनर्द्धिरनम्रो न नम्रो नष्टोभिनन्ध न ॥२२॥ a ... एवं २३, २४ श्लोको यह श्लोकके प्रथमाक्षरको गर्भमें रखकर बनाया हुआ चार आरोंवाला वह चक्रवृत्त है जिसकी चार महादिशाओं में स्थित चारों आरोंके अन्तमें भी वही अक्षर पड़ता है। अन्त और उपान्त्यके अक्षर दो दो बार पढ़े जाते हैं। २३, २४ नम्बरके श्लोक भी ऐसे ही चक्रवृत्त है। . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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