Book Title: Stutividya
Author(s): Samantbhadracharya, 
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ परिशिष्ट यहाँ काव्य-चित्रोंके कुछ उदाहरण अपने-अपने काव्य के साथ दिये जाते हैं, जिससे उनके विषय का यथेष्ट परिज्ञान हो सके। साथमें चित्रोंका ठीक परिचय प्राप्त करनेके लिये जरूरी सूचनाएँ मी दी जा रही हैं । इन सबको देनेसे पहले चित्रालङ्कार-सम्बन्धी कतिपय सामान्य नियमोंका उल्लेख कर देना आवश्यक है, जिससे किसी प्रकार के भ्रमको अथवा चित्रभङ्गकी कल्पनाको कहीं कोई अवकाश न रहे । चित्रालङ्कारोंके सामान्य नियम(१) "नाऽनुस्वार-विसर्गौ च चित्रभङ्गाय संमतौ।" _ 'अनुस्वार और विसर्गका अन्तर होनेसे चित्राऽलङ्कार भंग नहीं होता। (२) “यमकादौ भवेदैक्यं डलो रलो वोस्तथा ।" 'यमकादि अलङ्कारों में ड-ल, र-ल और व-ब में अभेद होता है। (३) यमकादि चित्रालङ्कारों में कहीं कहीं श-ष और न-ण में भी अभेद होता है; जैसा कि निम्न संग्रह श्लोकसे जाना जाता है "यमकादो भवेदेक्यं डलयो रलयोर्वबोः । शपयोनणयोश्चान्ते सविसर्गाऽविसर्गयोः सविन्दुकाऽविन्दुकयोः म्यादभेद-प्रकल्पनम् ॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204