Book Title: Sthanang Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ स्थानाङ्गसूत्र भाग चौथेकी विषयानुक्रमणिका विपय mo509 अनुक्रमाङ्क पृष्ठाङ्क पांचवे स्थानका दूसरा उद्देशा १ पांचवे स्थानके दूसरे उद्देशेका विषय विवरण २ विहारके विषय में कल्पने योग्य और नहीं कल्पनेयोग्यका निरूपण२-१० गुरुप्रायश्चित्तका निरूपण ११-१६ निर्ग्रन्थों के राजाके अन्तःपुरमें प्रवेशका निरूपण १६-२० स्त्रियों में रही हुई क्रियाविशेषका निरूपण २०-२३ ६ गर्भके संवन्धमें-गर्भ विषयका निरूपण २३-२८ ७ साध्वी के संबद्ध कथनका निरूपण २८-३६ ८ आस्रव, संवर वगैरह द्वारोका निरूपण ३६-४० ९ आस्रव विशेषरूप क्रिया स्थानका निरूपण ४०-५२ १० निर्जराके उपायभूत परिज्ञाका निरूपण ५२-५४ ११ व्यवहारका निरूपण ५४-७० संयत और असंयतों में सुप्त और जाग्रत के स्वरूपका निरूपण ७०-७२ १३ कर्मवन्धके कारणका निरूपण १४ उपघातके स्वरूपका निरूपण ७४-८१ १५ बोधीके सम्यक प्राप्तिका और अमाप्तिके कारणको निरूपण ८१-९२ संयमके स्वरूपका निरूपण ___५३-१०३ संयम और असंयमका निरूपण १०३-१०८ वादर भेदवाले वनस्पतिका, पांच प्रकारके वादर भेदोंका निरूपण आचार कल्पकेस्वरूपका निरूपण १०९-११९ मनुष्य क्षेत्रमें रहे हुवे पदार्थ विशेषका निरूपण ११९-१२८ २१ ऋषभ विगैरह तीर्थ करोंका निरूपण १२२-१३० भावमवुद्वको कारण के होने पर जिनाज्ञाकी अनतिक्रमणता होने का निरूपण १३१-१४२ २३ आचार्य और उपाध्यायके अतिशयमें रहने पर जिनाज्ञाका अनुल्लंघनका निरूपण १४२-१५१ १८

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