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स्थानाङ्गसूत्र भाग चौथेकी विषयानुक्रमणिका
विपय
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अनुक्रमाङ्क
पृष्ठाङ्क पांचवे स्थानका दूसरा उद्देशा १ पांचवे स्थानके दूसरे उद्देशेका विषय विवरण २ विहारके विषय में कल्पने योग्य और नहीं कल्पनेयोग्यका निरूपण२-१० गुरुप्रायश्चित्तका निरूपण
११-१६ निर्ग्रन्थों के राजाके अन्तःपुरमें प्रवेशका निरूपण १६-२० स्त्रियों में रही हुई क्रियाविशेषका निरूपण
२०-२३ ६ गर्भके संवन्धमें-गर्भ विषयका निरूपण
२३-२८ ७ साध्वी के संबद्ध कथनका निरूपण
२८-३६ ८ आस्रव, संवर वगैरह द्वारोका निरूपण
३६-४० ९ आस्रव विशेषरूप क्रिया स्थानका निरूपण
४०-५२ १० निर्जराके उपायभूत परिज्ञाका निरूपण
५२-५४ ११ व्यवहारका निरूपण
५४-७० संयत और असंयतों में सुप्त और जाग्रत के स्वरूपका निरूपण ७०-७२ १३ कर्मवन्धके कारणका निरूपण १४ उपघातके स्वरूपका निरूपण
७४-८१ १५ बोधीके सम्यक प्राप्तिका और अमाप्तिके कारणको निरूपण ८१-९२ संयमके स्वरूपका निरूपण
___५३-१०३ संयम और असंयमका निरूपण
१०३-१०८ वादर भेदवाले वनस्पतिका, पांच प्रकारके वादर भेदोंका निरूपण आचार कल्पकेस्वरूपका निरूपण
१०९-११९ मनुष्य क्षेत्रमें रहे हुवे पदार्थ विशेषका निरूपण ११९-१२८ २१ ऋषभ विगैरह तीर्थ करोंका निरूपण
१२२-१३० भावमवुद्वको कारण के होने पर जिनाज्ञाकी अनतिक्रमणता होने का निरूपण
१३१-१४२ २३ आचार्य और उपाध्यायके अतिशयमें रहने पर जिनाज्ञाका अनुल्लंघनका निरूपण
१४२-१५१
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