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विद्यापीठ के प्रांगण में
पूज्य आचार्यश्री राजयशसूरि जी म०सा० की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से अक्टूबर माह में यशोविजय ग्रन्थमाला के प्रकाशन की एक योजना बनायी गयी जिसमें ५१ लाख रुपयों का एक ध्रौव्य फण्ड एकत्र कर उपाध्याय यशोविजय जी द्वारा रचित ग्रन्थों तथा अन्य जैन ग्रन्थों का प्रकाशन होना निश्चित हुआ, परन्तु दुर्भाग्यवश किन्हीं विशेष परिस्थितियों के कारण यह योजना कार्यान्वित नहीं की जा सकी। इसी माह में संस्थान में लम्बे समय से बन्द पड़े भोजनशाला को नियमित करने का भी निर्णय किया गया। न महाराज की प्रेरणा से वाराणसी निवासी श्री निर्मलचन्द जी गांधी एवं उनके परिवार की ओर से १ लाख ५१ हजार रुपये की धनराशि प्राप्त हुई जिससे भोजनशाला का जीर्णोद्धार हुआ और ११०१/- रुपये प्रति मिति की दर से धनराशि मिलना प्रारम्भ हो गया।
१७ अक्टूबर को विद्यापीठ के निदेशक प्रो० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' नागपुर विश्वविद्यालय के पालि- प्राकृत अभ्यासमण्डल की बैठक में भाग लेने गये और वहीं से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला द्वारा आयोजित “प्राकृत काव्य में प्रतीतितत्त्व की परम्परा" नामक संगोष्ठी में सम्मिलित हुए जिसमें उन्होंने २० अक्टूबर को 'प्राकृत धम्मपद का काव्य सौन्दर्य' नामक शोध प्रपत्र प्रस्तुत किया और संगोष्ठी के एक सत्र की अध्यक्षता भी की। इसी संगोष्ठी में प्रो० जैन के साहित्यिक योगदान पर उन्हें सम्मानित भी किया गया। विद्यापीठ के प्रवक्ता डॉ० शिवप्रसाद अपने द्वारा लिखित 'तपागच्छ का इतिहास' नामक ग्रन्थ की पाण्डुलिपि लेकर उसके संशोधन/ परिवर्द्धन आदि के विषय में मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के निदेशक महोपाध्याय श्री विनयसागर जी के पास गये। वहां लगभग एक सप्ताह रह कर उनसे दिशा-निर्देश प्राप्त किया तथा उनके द्वारा प्रदत्त नूतन सूचनाओं को भी संकलित किया ।
४ नवम्बर को सायंकाल सुप्रसिद्ध विचारक श्री क्रान्तिकुमार जी के सारनाथ स्थित आवास पर उन्हीं के संयोजन में अवतारवाद पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें विद्यापीठ के निदेशक ने भी भाग लिया । ६ नवम्बर को विद्यापीठ में वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर के डॉ० ब्रज बिहारी चौबे का जैन साहित्य में वैदिक सन्दर्भ नामक विषय पर एक व्याख्यान आयोजित किया गया। आचार्यश्री राजयशसूरि जी म०स० की प्रेरणा से विद्यापीठ परिवार में दिनांक ८ नवम्बर को रंगोली तथा चित्रकला
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