Book Title: Sramana 2000 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 201
________________ १९६ न्यायमूर्ति श्री टुकोल यू० मेहता सुप्रसिद्ध विचारक एवं कुशल लेखक हैं। उन्होंने अत्यन्त प्रामाणिक रूप से सरल आंग्ल भाषा में शतावधानी सन्तबाल जी का जीवन परिचय प्रस्तुत किया है । पुस्तक सभी के लिये पठनीय और मननीय है। यदि इसका हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध हो जाये तो हिन्दीभाषी जन भी उक्त महान् सन्त की जीवनी और विचारधारा से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। षोडशाधिकारप्रकरणम् (सटीकम् ) - रचनाकार- आचार्य हरिभद्रसूरि; सम्पादक - मुनि वैराग्यविजय प्रकाशक- २०छ० चैरिटेबल ट्रस्ट- रत्नत्रयी आराधक संघ, नवसारी, प्रथम संस्करण- वि० सं० २०५५; आकार - डिमाई, पक्की बाइण्डिंग, पृष्ठ ३२+२०६ । विद्याधरकुलीन आचार्य हरिभद्रसूरि जैन - परम्परा के देदीप्यमान नक्षत्र थे। जैन परम्परानुसार उन्होंने १४४४ ग्रन्थों की रचना की थी; किन्तु उनमें से आज कुछ ग्रन्थ ही अवशिष्ट हैं । षोडशाधिकारप्रकरण भी उनमें से एक है। उक्त ग्रन्थ पर रचनाकार ने स्वयं टीका की रचना की है। उनके अलावा उक्त कृति पर चन्द्रकुलीन यशोभद्रसूरि तथा तपागच्छीय उपाध्याय यशोविजय जी ने क्रमशः विवरण और योगदीपिका की रचना की । प्रस्तुत पुस्तक में षोडशाधिकारप्रकरण मूल, विवरण व योगदीपिका को स्थान दिया गया है। इसके सम्पादक मुनि वैराग्यरतिविजय जी तपागच्छीय आचार्य रामचन्द्रसूरि जी म०सा० के समुदाय के विद्वान् मुनिजनों में से हैं। जैसा कि ग्रन्थ के नाम से ही स्पष्ट होता है इसमें कुल १६ अधिकार हैं। प्रत्येक अधिकार में १६-१६ पद / श्लोक हैं। विद्वान् सम्पादक ने सर्वप्रथम मूल गाथा, तदुपरान्त उस पर लिखा गया विवरण और अन्त में योगदीपिका को स्थान दिया है। पुस्तक का मुद्रण अत्यन्त सुस्पष्ट तथा त्रुटिरहित है। ऐसे सुन्दर और उपयोगी ग्रन्थ के प्रकाशन और उसके निःशुल्क वितरण के लिये सम्पादक और प्रकाशक दोनों ही बधाई के पात्र हैं । उक्त संस्था द्वारा षोडशाधिकारप्रकरणम् (मूल मात्र) का भी अलग से प्रकाशन किया गया है। शोध ( साहित्य-संस्कृति - गवेषणा प्रधान पत्रिका), अंक १२-१३ संयुक्तांक १९९९-२०००ई०; सम्पादक- प्रो० (डॉ० ) राजाराम जैन, प्रकाशक- आरा नागरी प्रचारिणी सभा, आरा (भोजपुर) बिहार, आकार - रायल अठपेजी; पृष्ठ ४+ १०७; मूल्य ८०/- रुपये । आरा नागरी प्रचारिणी सभा की १९०१ ई० में स्थापना हुई। इस संस्था द्वारा समय-समय पर विभिन्न गौरवशाली ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ । संस्था द्वारा १९७१ ई० से नियमित रूप से साहित्य-संस्कृति - गवेषणाप्रधान वार्षिक पत्रिका शोध का प्रकाशन किया जा रहा है। प्रस्तुत प्रति उसके १२वें १३वें अंक का संयुक्तांक है। इसमें कुल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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