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आचार्य विजयभुवनभानुसूरि और आचार्य जयघोषसरि का संक्षिप्त जीवन परिचय दिया है। इसके बाद के अध्यायों में इस समुदाय की विशेषता, इसके अधीन कार्यरत विभिन्न धार्मिक, शैक्षणिक व प्रकाशन संस्थाओं का विवरण तथा समुदाय के स्वर्गस्थ प्रभावक महात्माओं-मुनिजनों का जीवन परिचय दिया गया है। अन्तिम दो अध्यायों में विद्यमान सभी मुनिजनों एवं उसके पश्चात् स्वर्गस्थ मुनिजनों के बारे में विस्तृत तालिका दी गयी है। पुस्तक के अन्त में समुदाय के गच्छपति, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक एवं पंन्यास मुनिजनों के शिष्यों का अलग-अलग तालिका के रूप में विस्तृत चार्ट दिया गया है। वस्तुत: यह लघु पुस्तिका इस समुदाय की डाइरेक्टरी है। आज आवश्यकता इस बात की है कि इसी प्रकार तपागच्छ के अन्य सभी समुदायों की भी परिचय पुस्तिका प्रकाशित हो ताकि इतर जैन समुदाय के जिज्ञासु और शोधकर्ता भी उससे लाभान्वित हो सकें।
श्री पर्युषणा महापर्व के अष्टाह्निका प्रवचन; प्रवचनकार- आचार्य विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज; प्रकाशक- दिव्यदर्शन ट्रस्ट द्वारा श्री कुमारपाल भाई वी० शाह, ३९, कलिकुण्ड सोसायटी, धोलका ३८७८१०, गुजरात; प्रथम संस्करण वि०सं० २०५६; आकार- पोथी; पृष्ठ ४+१८६; मूल्य- सदुपयोग।
प्रस्तुत पुस्तक आचार्यश्री द्वारा वर्षों पूर्व पर्युषणपर्व पर अष्टाह्निका व्याख्यान में दिये गये प्रवचनों का संग्रह है। पूर्व में ये प्रवचन दिव्यदर्शन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए थे, परन्तु अब वे दुष्प्राप्य रहे। उनकी उपयोगिता को देखते हुए मूल प्रवचन का गुजराती भाषा से साध्वी हेमप्रज्ञाश्री जी महाराज ने हिन्दी अनुवाद किया जिसे दिव्यदर्शन ट्रस्ट द्वारा उदार अर्थ सहयोगियों की मदद से अत्यन्त नयनाभिराम रूप में आर्ट पेपर पर बड़े-बड़े अक्षरों में सुस्पष्ट रूप से मुद्रित कराया गया है। आचार्यश्री द्वारा गुजराती भाषा में दिये गये प्रवचनों का हिन्दी रूपान्तरण प्रकाशित हो जाने से हिन्दीभाषी जन भी उनसे लाभान्वित हो सकेंगे, इसमें सन्देह नहीं। ऐसे उपयोगी ग्रन्थ को अत्यन्त भव्य रूप में प्रकाशित कर प्रकाशक और उसमें आर्थिक सहयोग करने वाली संस्थायें बधाई की पात्र हैं।
पुण्यास्रवकथाकोश- रचनाकार- महाकवि रइधू, सम्पादक-अनुवादक- प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन; प्रकाशक- श्री दिगम्बर जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति, डी-३०२, विवेक विहार, दिल्ली-११००९५; प्रथम संस्करण- २००० ई०; आकार- डिमाई अठपेजी; पृष्ठ ३८+३१६; मूल्य ७५/- रुपये मात्र।
मध्यकालीन दिगम्बर जैन साहित्यकारों में महाकवि रइधू का नाम अग्रगण्य है। उनके द्वारा रचित कुल ३० कृतियों का उल्लेख मिलता है जिनमें से अभी तक २३ रचनायें उपलब्ध हो सकी हैं। इनमें से १९ रचनाएँ अपभ्रंश में, ३ शौरसेनी प्राकृत
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