Book Title: Sramana 1993 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 3
________________ आचार्य हरिभद्र और उनका साहित्य - डॉ. कमल जैन महत्तरा याकिनीसूनु के नाम से प्रसिद्ध आचार्य हरिभद्र जैन परम्परा के एक विशिष्ट विद्वान हुये हैं। वे प्रखर प्रतिभा से सम्पन्न एवं बहुश्रुत थे । दर्शन, साहित्य, न्याय, ज्योतिष और योग जैसे गंभीर विषयों पर लेखनी चलाकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया । जन्म से वैदिक धर्मानुयायी ब्राह्मण होने के कारण वैदिक साहित्य का उनका गहन अध्ययन था । जैन योग के वे आदिप्रणेता थे। उन्होंने अपनी समकालीन विकसित दार्शनिक विचारधाराओं का गहन अध्ययन किया था । आगमिक क्षेत्र में वे प्रथम टीकाकार हुए। उन्होंने लोक प्रचलित कथाओं के माध्यम से धर्म- प्रसार को एक नया रूप दिया । धार्मिक तत्त्वज्ञान के साथ-साथ तत्कालीन सामाजिक और व्यावहारिक ज्ञान का भी महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन किया और जैन धर्म सम्बन्धी विविध विषयों का प्रतिपादन करने के लिये अनेक प्रकरण लिखे । आचार्य हरिभद्र का जीवनन - वृत्त लोक कल्याण से प्रेरित उदारमना आचार्य ने समाज को विपुल साहित्य तो दिया किन्तु कीर्ति की लालसा से दूर अपने परिचय के सम्बन्ध में वे अनुदार बन गये । आचार्य ने अपने ग्रन्थों में कहीं भी अपने जीवन का कोई विशेष परिचय नहीं दिया है, किन्तु कहीं-कहीं अपने ग्रन्थों की प्रशस्तियों में थोड़ा बहुत संकेत किया है। उनके समकालीन और परवर्ती आचार्यों ने अपनी कृतियों में उनका जो उल्लेख किया है, उन्हीं के आधार पर उनके जीवनवृत्त की रूपरेखा यहाँ प्रस्तुत की गई है। जैन परम्परा में वे याकिनी महत्तरासूनु के नाम से जाने जाते हैं। आवश्यक सूत्र - बृहद्वृत्ति में उन्होंने अपना परिचय देते हुये लिखा है कि वे विद्याधर गच्छ से सम्बन्धित थे। इनके ही गच्छ के आचार्य जिनभद्र भी थे। उनके दीक्षा गुरु जिनदत्त सूरि थे । महत्तरा याकिनी नामक साध्वी की प्रेरणा से उन्हें धर्मतत्त्व प्राप्त हुआ था । उपदेशपद की प्रशस्ति में उन्होंने अपने आपको याकिनी महत्तरा के धर्मपुत्र के रूप में प्रस्तुत किया है। 2 यही बात उन्होंने दशवैकालिक बृहद्वृत्ति और पंचसूत्र विवरण की प्रशस्ति में भी कही है। नन्दी हारिभद्रीयवृत्ति के अन्त में आचार्य ने अपने आपको आचार्य जिनभट्ट का पादसेवक कहा है। 3 उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला कहा में कहा है कि भवविरह से मुक्ति चाहने वाला ऐसा साधक कौन होगा जो आचार्य हरिभद्र को वंदन नहीं करता । वे सैकड़ों मतवादों और शास्त्रों को जानने वाले हैं, समराइच्चकहा जिनकी कथाकृति है । 4 प्रभावक चरित कहावली, गणधर सार्धशतक और प्रबन्ध कोश में उनके जीवन के बारे में उल्लेख हुआ है। प्रभावक चरित के अनुसार हरिभद्र For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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