Book Title: Siddha Siddhanta Paddhati
Author(s): Kalyani Mallik
Publisher: Poona Oriental Book House Poona

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Page 151
________________ ७८ मन निरास प्रेम रस भोगी । भणत भरथरी ते नर जोगी । पंच पडा अधिक वल्यवंता । मनराइमैं मत गाज ॥ ११ ॥ करडी लहर कद्रप की निकसै । तब कूंड जूझे कूंड भाजै । वैरागी जोगी राग न करणां । मन मनसा करिबंडी ।। १२ ।। आगम अगोचर सिद्ध का आसण । आसातृष्णा षंडी । आसा पंडी मनसा पंडी । मन पवनां होई उजीरं ॥ १३ ॥ सति सति भाषेत राजा भरथरी । तब मन होइबा थीरं । राज गयां कूं राज्य झूरै । वैद गयाकूं रोगी ॥ १४ ॥ रूप गये कूं कामणी झूरै । विन्द गया कूं जोगी । बीज नहीं अंकुर नहीं । रूप नहीं रेष अहंकार ।। १५ ।। उदय अस्त वहां कथ्या न जाई । तहाँ भरथरी रहा समाई । मरने का संसा नहीं । नही जीवन की आस । १६ ॥ सति सति भाषेत राजा भरथरी । हमारे सहजै लीलविलास ॥ १७ ॥ निरघत कंथा हौं विस्तार । कथौ निरंजन रहौ अकार । पूछंत विक्रम बांवन बीरं । कूंण प्रचै रहिबा थीरं ॥ १८ ॥ सुन हो विक्रम ब्रह्म यांन । देही बिबरजित धरौ धियन । उदै अस्त जहा कथ्या न जाई । तहाँ भ्रथरी रह्या समाई ।। १९ ।। आगे बहनीं पीछें भांनु । निरति सुरति बृछ तलि ध्यांन । कथै निरञ्जन र उदास । अजहूँ न छांडै आसा वास ।। २० ।। माया सनि रस ग्रब । नहीं धेन जोबन राजा द्रव । कनक कांमनी भोग विलास । कहै भरथरी कंध विनास ।। २१ ।। साधिया तो ऐक पवन आरंभ साधिबा - 1 छाडिबा तौ सकल विकारं ।

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