Book Title: Siddha Siddhanta Paddhati
Author(s): Kalyani Mallik
Publisher: Poona Oriental Book House Poona

Previous | Next

Page 163
________________ ॥ अथ जलंधरी पावजी की सबदी ॥ सुनि मंडल मैं मनका बासा । जहां प्रम जोति प्रकासा । आपे पूछै आपै कहै । सत गुरु मिलै तै प्रमपद लहै ॥१॥ ऐक अचंभा ऐसा हूवा । गागर मांहि उसास्या कूवा । वो छीनेज पहूचै नांही । लोक पयासा मरि मरि जांही ॥२॥ आसा पासा दूरि करि । पसरंती निवारि । स्पध साधिक म संग करि । के गुरमुष ग्यान विचारि ॥३॥ धरती आकास पवन अर पांणी । चंदसूरषट दरसण जाणी। ॐ कार का जाणै मंत । जैसा सिधा अलष अनंत ॥४॥ गोपीचंद कहै स्वामीजी । बस्ती रहूं तौ कद्रपब्यापै।। जंगलि जाऊं तो षुध्या संतापै । आसाणी रहूं तौ व्यापै माया ।। पंथ चलूं तौ छीनै काया । मीठौ षांड तौ ब्यापै रोग । कहौ कासी प्रसांधू जोग ।। ५॥ सांभलि अवधू तत विचार । ऐनिज सकल सिरोमणि सारं । संजम अहार कंद्रप नही ब्यापै । बाई अहार षुध्यान संतापै । सिध आसन नहि लागै माया । नाद पयानै नहि छीजै काया । जिभ्या स्वाद न कीजै भोग । मन पवनां ले साधौ जोग ॥६॥ मरदने केसस थामि लै अवधू । पवना थामि लै काया। अत्सेजु राम रन थांभि लै । विचार त्याग लै माया ॥७॥ सत सिध मते पार । न मरै जोगी न ले अवतार । सुनि समावै बावै बीनां । अलष पुरष तहां ल्यौ लीना ॥८॥ जोग न जोग्या भोग न भोग्या । अहला गथा ज मारा । गांमे गधा जंगल सूकर । फिरि फिरि ले अवतारा ॥९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 161 162 163 164 165 166