Book Title: Siddha Siddhanta Paddhati
Author(s): Kalyani Mallik
Publisher: Poona Oriental Book House Poona
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८३
जंजाल आगे जंजाल पीछे । जंजाल क्युं मांर कै मांडै । सो जंजाल तजि फिरि जोगी हूवा । सो जंजाल फिरिमांडें ॥ ११ ॥
धाकर कूकर कीगर हाथि । बोली भोली तरणी साथि । दिनकर भिष्या रात्युं भोग । चरपट कहैं बिगोवे जोग ॥ १२ ॥
गंग विगंधा मृताषांड | पसवा पड़ि पड़ि तौड़े हाड । ज्याहन बंची आंगुलच्यारि । चरपट कहै ते माथै मारि ॥ १३ ॥ जलकी भीत पिवनका थंमा । देवल देप्यर भया अर्चमा । बाहर भीतर गंधम गंधा । काहे मूलोरे पसवा अंधा ॥ १४ ॥ आंषि की टगटगी नाककी डांडी । चांमकी चंद्री यारुघ्रसू मांडी । मल प्रसेद सुरति जहां सूदा । अहार की कोथली नरक का
कुंडा ॥ १५ ॥
मनका बासा जहां मासकालूचा । सिष्टिकाद्वारजहां केसका कूचा । गंधविगंधा जहां चार विचारी । चरपट चाल्यौ मात जुहारी ।। १६ ।।
चामकी कोथली चामका सुवा । तास की प्रीति करि जगत सबमूवा देव गंधप मानव जेता । उबरचा ऐकको गुरमुखता ।। १७ ।।
फोकट फोकट कथै गयान । कूटै चमड़ी धेरै ध्ययान । सिध पुरषां करै उपाधी । चरपट कहै ऐ कलियुगके बादी || १८ || far as a भग । ताका काला मुष अर पीला पग | कूटै चमड़ी धेरै ध्यान | ताप सुवामैं कहा गियांन ॥ १९ ॥ चरपट कहै सुणीरे अवधू । कामणि संग न कीजै । झिंद बिंद नव नाडी सोषै । दिनदिन काया छीजै ॥ २० ॥
जतन करंता जाइ सुजाड़ । भग देषि जिन घालै घाव । कोटि बरष लूं बाढे आव । सति सति भाषेत श्रीचरपटराव ।। २१ ।।
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