Book Title: Siddha Siddhanta Paddhati
Author(s): Kalyani Mallik
Publisher: Poona Oriental Book House Poona

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Page 158
________________ रूपं वृष गिरकंद लिवास । दोइ जन अंग न मेलै पास पलटै काया पंड रोग । चरपट बोले ने धनि जोग ॥३४॥ रण्या चरपट विवरजित कंथा । पुण्यांपुणि विवरजित पंथा । स्वादास्वाद विवरजित तुंड । मुख मानाजावत मुंडे मुंड ।। ३५ ।। मन नहीं मूडे मूड केस । कसा मुंड्या क्या उपदेस । मूडै नहीं मन मरदका मान । चरपट बोलें तत्तगयांन ।। ३६ ।। धींगा धींगी मुस्ता मुस्ती । बहोत चौर वाजारी। आपगुर निंद पर गुर बंदै । लड़बड़ीया लपच्यारी ॥३७ ।। झोली पाई पत्र पाया । पाया पंथ का भेव । रीता जाऊं भरीया आऊं। कहा करै गुरदेव ॥३८॥ सहज सुभाइ भिष्या मांगिया । संजे मे भजन करणा । आसण दिढ करि बैसित्रा अवधू । मन मुष भटकिन मरणा ॥ ३९ ॥ फोकट आवै फोकट जाइ । फोकट बोले फोकट पाइ । फोकट बैठो करै विवांद । चरपट कहै सब उपाधि ।। ४० ।। बामै हाथि कमंडल दाहिणे डंड । मोडोचक्र पूजो हो भंड । बैठौ तुम आगै रंड । चरपट कहै ऐ सब पाषंड ॥४१॥ भेष लीया सो भेद न पाया । घर छाड्या प्रवजी न माया । नाथ विसारि निडर जग जोया । सांग बनाइ सुषीहवै सोया ॥४२॥ ना धरि त्रिया नां धरि बरता । ना धरि धावन जोवन मंता । ना धरि पुत्र न धीव कवारी । तातै चरपट नीद पियारी ॥४३॥ दिन उठि घर घर दीन्ही फेरी । अंतरि उलटि न आत्मा हेरी । पात्र पूरया पेट फूलाया । मांगी भिष्या गटकाषाया ॥४४॥

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