Book Title: Siddha Siddhanta Paddhati
Author(s): Kalyani Mallik
Publisher: Poona Oriental Book House Poona

Previous | Next

Page 157
________________ चरपट चीरचक्र मनकथा । चितचमां ऊं करना । जैसी करनी करौ रे अवधू । ज्यूं बहौर न होई मरनां ॥ २२ ॥ दिढकरि मनवा थिर करि चित । काया पवन पषालै नित । अभए भऐ जूं थिर हवै कंध । उडैन हंसा लागै बंध ।। २३ ।। अवध मूल दवार दीजे बंध । बाई पेलै चोटि संघ । जुरा पलटै पंडै रोग । बोले चरपट धनिधनि जोग ॥ २४ ॥ बंध सबंध विषय करि बंद । तलि करि रवि उपरिकरिचंद । राति द्यौस रस चरपट पीया । पटतेलन बूझै दीया ।। २५ ।। जीवू रावल परा सयानां । हंसि किन बांधे टाटी। बारा आंगुल पसि गई है । सोला आंगुल फाटी ।। २६ ।। पवना कंथा अनले बाम । पिसन न कोई आवे पास । मन मू मतौ गुझ ग्यान विद्रूत । चरपट कहै धनिअवधूत ।। २७ ।। निरभै निसंक ते ततवेता । मन मानि विवरजित इंद्रीजिता । सेत फटिक मणि ग्यान रता । चरपट कहाँ ऐ सिध मता ।। २८ ।। माधै मूपर मारै निंद । सुपने झरिवा देयन बिंद । पड़े न पिंड न झपे रोग । चरपट बोले ऐसिध जोग ॥ २९॥ भरथर चरपट गोपीचंद । बंद्यौ पूरण प्रमानंद । पीर पांड घृत छाडयौ भोग । राष्यौ आत्म साध्यौ जोग ॥३०॥ तांबा तूंवा दोऊं मूचा । राजा जोगी दोऊ ऊंचा। तांबा डूबै तूंबा तिरै । जीवे जोगी राजा मरे ॥ ३१ ॥ ऊजल कथा बिगड़े बास । कामनि अंग न मेलै पास। दिढकरि रापै पांचू इंद्री । बोलै चरपट ते जोग्यद्री ॥ ३२ ॥ कर प्रभिछया वृषतलि बास । कामनि अंग न मेलै पास । बन पंडर है मसाणा भूत । चरपट बोले ते अवधृत ॥३३॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166