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॥ मत्स्येन्द्रनाथजी का पद ॥ [ राग कालिङ्गडा ]
भूखड ली लागी थारा नांवनी । म्हाने भावे भावे भगवत जीरो नांव म्हारा बाल्हारे । टेक जाण जैसी रंग भेंटिये कांई भजन भलो भगवंत म्हारा बाल्हारे १ सबही तीरथ मैं बसे तो कांई मंजन करें जन कोड़ म्हारा बाल्हारे २ निरमल थाते न्हाई चल्या काई एडोपटंतर जोई म्हारा बाल्हा रे ३ काया तीरथ में ज्ञान बडो कांई साधन दरसण होई म्हारा बाल्हारे ४ भणे रे मच्छै ई एह ड़ो पटतर कई भगवत सवा न कोई म्हारा बाल्हारे ५ ।। [ राग घनाक्षरी]
पेरू ऊडिसी । आय लीयो बीसराम । ज्यौ ज्यो नर स्वारथ करें कोई न सवाय काम । टेक | जलकूं चाहें मछली घण Î चाहें मोर सेवग चाहै राम कूं ज्यौं चितवत चन्द चकोर १ यो स्वारथको जीवडो स्वारथ छोडि न जाय जब गोविन्द किरपा करी म्हारौ मनवौ समझौ आय २ जोगी सोई जाणी रे जगते रहे उदास ततनिरंजण पाइय यो कहै मछन्दर नाथ | २॥
॥ इति ॥