Book Title: Shuddhopayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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सावधानतया कार्या, वैरिणां सद्दयाजनैः विश्वासोनैवशत्रूणां कर्तव्यः सद्दयाधरैः ॥ १७८ ॥ शक्तानां सद्दयाधर्मा, मोक्षमार्गविहारिणाम् अशक्तानां दया कार्या, शक्तिमद्भि विवेकतः ॥ १७९॥
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दुष्कालादिप्रसङ्गेषु, मानवपशुरक्षणम् कर्तव्यमन्नवित्ता, रनेकैः साधनैर्जनैः ॥१८०॥ दयादानादिसत्पुण्यैः सुभिक्षं च निरोगता खंडे देशे च संवे च जायते नैव संशयः ॥ १८९ ॥ महापुण्येन पापस्य, विपाकोपशमो भवेत् दयादिपुण्यकार्यैश्च, सुखंहि दुःखनाशनम् ||१८२|| दयामयेषु देशेषु, खण्डेषु सर्वजातिषु; शान्तिस्तुष्टिस्तथापुष्टि, रारोग्यं मंगलभृशम् ॥ १८३॥ दयाकार्येषुदोषोऽपि स्यात्तथाऽपियाधिया पुण्यधर्मस्यबाहुल्या, दाऽऽत्मोन्नतिर्भवेद्भृशम् ॥ १८४॥ अहिंसायाः प्रचारार्थं, दयाकर्म समाचर
दुर्लभं नृभवं प्राप्य, मा प्रमादं कुरुक्षणम् ॥१८५॥ अहिंसाधर्मकार्येण नृजन्मसफलं कुरु किं वित्तेन स्त्रिया भोगे, दयाधर्मं समाचर ॥ १८६॥ सर्वतोर्थक रैस्क्तो, दयाधर्मः सुखंकरः स्वापणेन दयाकर्म, कुरुष्व स्वोपयोगतः ॥ १८७॥ दुःखीकृत्याऽन्यलोकांस्त्वं, मा जीव पापकर्मभिः सर्वजीवसुखाय त्वं, जीव पुण्यसुकर्मभिः ॥ १८८ ॥ सर्वलोकसुखार्थं त्वं, स्वाऽऽत्मभोगं समर्पय कुरुनिष्कामतोलोक - हितार्थाय शुभं च यत् ॥ १८९॥
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