Book Title: Shuddhopayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 145
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૨૨ सर्वसमानं खलु जैनराज्ये, गुणज्ञ ! चैवं परमार्यराज्यम् । वर्णादिधर्मानपि पाषय त्वमन्यायतो नापिं कुरुष्व रोषम् ॥ १०२॥ सर्वत्र देशे सुखिनो जना ये, ते जैनधम नियतं भजन्ति । भक्तिर्मदीया समुदेति यन्त्र, श्रीमेघवृष्ट्यादि सुख ततोऽस्ति ॥ १०३ ॥ दुष्टा जना यत्र न चापि नीतिरधर्म्ययुद्धैःकलहोऽस्ति तत्र । हिंसाश्च पापानि भवन्ति यत्र, नश्यन्ति ते श्रेणिक राजदेशाः ॥ १०४॥ मद्वाक्यधिक्कार उदेति यत्र, स्युर्दुःखिनस्तत्र नराः स्त्रियश्च । तत्रास्ति शान्तिर्मम यत्र भक्तियोगस्य हार्द समुदेति तत्र ॥ १०५ ॥ श्रीजैनधर्मेण समो न कधित्ततो द्वितीया सकलेऽप्यवस्था, श्रीजैनधोऽस्ति निजाऽऽत्मधर्मस्ततो भवत्येव समग्रशर्म ॥ १०६ ॥ तमोरजोवृत्तिमपाकुरु त्वं, संरक्ष भोः सात्त्विककर्मवृत्तिम् । श्रीजैनधर्मों व्यवहारतोऽयं, सर्वत्र लोकेषु सुखालयोऽयम् ॥ १०७.॥ For Private And Personal Use Only

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