Book Title: Shrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 July-2019 ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०॥ ॥२१॥ SHRUTSAGAR चाल- बावन देहरी दीपेक्, मानु स्वर्गसुंजीपेक् । डंड कलश ही झलकैक्, कवियण देख ही मलकैक् जिणमें देव हे साराक्, दरिसण दीठा है प्याराक् । ओरीसा ओपे हें एसाक्, जडीया मही में खासाक्६ जस पर केसरां घसीयाक्, हिवडा हरखसें हसीयाक् । भूहिरा एक हे भारीक, मानु मद ही गारीक्२९ प्रभु पखाल ही आवेंक, नीकी खाल सुहावेक् । पावड-साला हें प्याराक्, तिणका काम है साराक् उपर चढकें जोयाक्, हीवडा हर्षस्यै(से) मौह्याक् । मु(मू)लनायक हैं देहराक, मानु स्वर्ग का सेहराक् सुवर्ण कलश हे ताजाक्, तिणका काम हैं जाझाक् । झिलमिल जोत ही जीपेक्, ऐसा कलश ही दिपेक् तिण पर डंड हे भारीक्, जडीत लोहमें मारीक । धजा एहवी जलकेक, गगन वीजरी भलकेक्७३ एहवा देहरा दीठाक्, मिसरी दूध हे(से) मीठाक् । करी कोरणी जी(सी)नीक, सातें धात हे भीनीक् अस(स्स)ल केसरी जायोक्५, भवियण मनडे भायोक्६ । पथ्थर कहर ही कापीक्, उपर छत्रीयां थापीक् चोमुख शिखर ही दीठाक्, पाप सर्व ही नीठाक् । अधिकां काम ही ओपेक्, नीका गोख ही दीपेक् उनकी कोरणी केसीक्७, अरबुद गढ हे जेसीक् । कारीगर खांत छै(स) कीधाक्, मांग्या दाम ही लीधाक् ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ ३४. ओरसियो, ३५. पृथ्वीमां, ३६. खास्सो घणो ३७. हृदय, ३८. भोयरुं, ३९. अहंकार?, ४०. ?, ४१. शिखर (?), ४२.?, ४३. चमके, ४४. खांड, ४५. बन्यो (?), ४६. गम्यो, ४७. केवी, ४८. होशथी, काळजीथी, For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36