Book Title: Shrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir July-2019 ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ SHRUTSAGAR 17 गडगड त्रंबालुं गु(ग)डे, धुरे निसांणे१ घाय२ । आरतीयां जिनरायनी, इंद्र उतारे आय रंगमंडप रलीयामणो, देख्या मोहत मन(न्न)। वाह वाह विधिसुं बण्यौ, नीरमल (नि)हुआ जतन(न्न) चालि- रंगमंडप ही राजेक्, सुंदर काम ही छाजेक् । देखी जालीयां जोखाक्, जांणे मुगत की मो(गो?)खाक् भंडार भूर हे भरीयाक्, खजाना बहुत ही धरीयाक् । सुवर्णवांन हे मुंडाक्३, तिणका पार नहीं तुंडाक्४, दूहा- मूलगभारो(रा) मो(मा)हिला, मै अ(आ)ज नैणे दीठ। भांण समोवड झलहलें, पावन हुई दीठ६५ पारस परतख पेंखीयो, चिंतामण चित्तवेल६६ । जब संग पारस भई, अरीयण नांख्या ठेल चालि - दीठी दीप की मालाक्, तोरण जा(झा)कज(झ)मालाक् । कीवी आरती आसीक्, खेवत धूप सुवासीक् केसर दणा मेलीक, कपू(प्पू)र कस्तु(स्तू)री भेलीक् । इस विध आंगीयां ओपेक्, दुनीयां आण नहीं लोपेक् मोगर मालती मोहेक्, चंपा केवडा सोहेक् । गयंदा ८ गुंथकें ल्यावेक, प्रभुने मस्त चढावेक् दरसण देव का दीठाक्, पाप सर्व ही नीठाक् । मस्तक मुगट ही ज(झ)लकेक, कंठे हार ही हलके कांने कुंडला सोहेक्, निरमल नेत्र ही मोहेक् । भाला वीस हे टीलाक्, जडीया नंग ही नीलाक् कंठे चंप की कलीयाक्, विच विच लाल ही मलीयाक् । बाजुबंध है भारीक, नीका काम है बारीक ॥४४॥ ॥४५॥ ॥४६॥ ॥४७॥ ॥४८॥ ॥४९॥ ॥५०॥ ६०. एक जातनुं नगारा जेवू वाद्य, ६१. नोबत, डंको, ६२. प्रहार, ६३. जिनालयनु मुख आगळनो भाग?, ६४. ?, ६५. दृष्टि, ६६. चित्रवेली, ६७. करी, ६८. फुलनुं नाम(?), ६९.?, ७०. कळी, For Private and Personal Use Only

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