Book Title: Shrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 श्रुतसागर जुलाई-२०१९ २. परमार्हत कुमारपाल एवं जगतशेठ श्रुतखण्ड श्रुतखण्ड इस संग्रहालय का महत्वपूर्ण खण्ड है, जो सामान्यतया अन्य किसी संग्रहालय में नहीं होता है। इस खण्ड में प्राचीन से अर्वाचीन काल तक की श्रुत परम्परा प्रदर्शित की गई है। इस खंड में पठन-पाठन की पाँच प्रक्रियाओं के द्वारा श्रुत का शिक्षण एवं संरक्षण, ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति एवं विकास, आगम वाचना, ग्रन्थलेखन, जैन लिपि, लेखन के माध्यम एवं साधन, सुलेखन कला ग्रंथ के विविध स्वरूप, ग्रन्थ संरक्षण के माध्यम के साथ-साथ ४५ आगम एवं अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर रचित हस्तप्रतों को प्रदर्शित किया गया है। ३. श्रेष्ठी धरणाशा एवं पेथडशा मंत्री चित्र खण्ड ___ सचित्र पाण्डुलिपियाँ दीवारों, काष्ठफलकों, वस्त्रों पर चित्रांकन की परंपरा प्रारंभिक काल से प्रचलित रही है। सातवाहनकालीन अजंता की गुफा के भित्तिचित्र इस परंपरा के स्पष्ट साक्ष्य हैं। १०वीं शताब्दी के पूर्व ही धार्मिक और साहित्यिक ग्रन्थों की सचित्र पाण्डुलियों की एक सामान्य परंपरा प्रचलित थी। प्रारंभिक पाण्डुलिपियों की चित्रशैली प्राचीनकाल से चली आ रही अजंता की उच्चस्तरीय चित्र-परंपरा से ली गयी थी। परंतु इसकी रचना में कहीं अधिक स्थिरता और प्रस्तुतीकरण में औपचारिकता थी। अजंता एलोरा की चित्रशैली गुजरात में १२वीं शताब्दी तक निरंतर रूप से प्रचलित रही। आगे चलकर उसने एक विकसित शैलीबद्ध स्थान ग्रहण किया। गट्टाजी गट्टाजी एक प्राचीन परंपरा है। जैनधर्म में प्रातः सर्वप्रथम जिनदर्शन पूजा एक नित्यक्रम माना गया है। प्राचीन काल में तीर्थयात्रा के दौरान जहाँ दूर-दूर तक जिनमंदिर दिखाई नहीं देते थे, वैसी जगह पर भी रात्रि विश्राम करना पड़ता था। ऐसी परिस्थिति में गाजी में अंकित तीर्थंकर के दर्शन-पूजा आदि करके अपने धर्म का पालन करते थे। विज्ञप्ति पत्र कुण्डलीनुमा पटों पर कथा-चित्रण एक प्राचीन परम्परा है। इसी परम्परा के For Private and Personal Use Only

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