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SHRUTSAGAR
___July-2019 दीपिका नामक स्वोपज्ञटीका भी लिखी है, जिसमें गुरु के गुणों को विस्तारपूर्वक समझाया गया है. पूज्यश्रीजी ने ४० गाथाओं में इस कृति की रचना की है। इनमें से ३६ गाथाओं की प्रत्येक गाथा में गुरु के ३६ गुणों का वर्णन किया है। इस प्रकार इस कृति के माध्यम से गुरु को १२९६ गुणों से युक्त बताया गया है। ____ आचार्य श्री रत्नशेखरसूरिजी ने टीका के अन्त में अपनी गुरुपरम्परा को स्मरण करते हुए लिखा है कि बृहद्गच्छ (नागपुरीय तपागच्छ) में जयशेखरसूरि के पट्टधर श्री वज्रसेनसूरि, उनके पट्टनायक श्री हेमतिलकसूरि का शिष्य मैं श्री रत्नशेखरसूरि ने इस विवृत्ति को लिखा है. इनके द्वारा लिखित संस्कृत एवं प्राकृत की अन्य कृतियाँ भी मिलती हैं। ___ गुरु की महिमा एवं उनके गुणों को प्रस्तुत करती इस कृति का पूज्य मुनि श्री संयमकीर्तिविजयजी ने गुजराती भाषा में सरल एवं सुगम्य शब्दों में भावार्थ लिखकर समाज को उपकृत किया है। पूज्य मुनि श्री तपागच्छीय पूज्य आचार्य श्री पुण्यकीर्तिसूरिजी के शिष्य हैं। इन्होंने गुरु गुण महिमायुक्त इस कृति का संपादन एवं अनुवाद करके सर्वसुलभ कर दिया है।
पूज्य मुनिश्री संयमकीर्तिविजयजी ने इस ग्रन्थ का सम्पादन व अनुवाद कर लोकोपयोगी बनाने का जो अनुग्रह किया है, वह सराहनीय एवं स्तुत्य कार्य है। पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। विस्तृत विषयानुक्रमणिका एवं परिशिष्ट में टीका के संदर्भग्रंथों की सूची देने से प्रकाशन बहुपयोगी हो गया है। __ अनेक महान ग्रंथों की प्रस्तुति के पश्चात् पूज्यश्रीजी की यह एक और सीमाचिह्न रूप में प्रस्तुति है। संघ, विद्वद्वर्ग, जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं।
भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं प्रभुभक्तिमार्ग में उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करते हैं।
पूज्य मुनिश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन।
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