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July-2019
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SHRUTSAGAR चाल- बावन देहरी दीपेक्, मानु स्वर्गसुंजीपेक् । डंड कलश ही झलकैक्, कवियण देख ही मलकैक् जिणमें देव हे साराक्, दरिसण दीठा है प्याराक् ।
ओरीसा ओपे हें एसाक्, जडीया मही में खासाक्६ जस पर केसरां घसीयाक्, हिवडा हरखसें हसीयाक् । भूहिरा एक हे भारीक, मानु मद ही गारीक्२९ प्रभु पखाल ही आवेंक, नीकी खाल सुहावेक् । पावड-साला हें प्याराक्, तिणका काम है साराक् उपर चढकें जोयाक्, हीवडा हर्षस्यै(से) मौह्याक् । मु(मू)लनायक हैं देहराक, मानु स्वर्ग का सेहराक् सुवर्ण कलश हे ताजाक्, तिणका काम हैं जाझाक् । झिलमिल जोत ही जीपेक्, ऐसा कलश ही दिपेक् तिण पर डंड हे भारीक्, जडीत लोहमें मारीक । धजा एहवी जलकेक, गगन वीजरी भलकेक्७३ एहवा देहरा दीठाक्, मिसरी दूध हे(से) मीठाक् । करी कोरणी जी(सी)नीक, सातें धात हे भीनीक् अस(स्स)ल केसरी जायोक्५, भवियण मनडे भायोक्६ । पथ्थर कहर ही कापीक्, उपर छत्रीयां थापीक् चोमुख शिखर ही दीठाक्, पाप सर्व ही नीठाक् । अधिकां काम ही ओपेक्, नीका गोख ही दीपेक् उनकी कोरणी केसीक्७, अरबुद गढ हे जेसीक् । कारीगर खांत छै(स) कीधाक्, मांग्या दाम ही लीधाक्
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३४. ओरसियो, ३५. पृथ्वीमां, ३६. खास्सो घणो ३७. हृदय, ३८. भोयरुं, ३९. अहंकार?, ४०. ?, ४१. शिखर (?), ४२.?, ४३. चमके, ४४. खांड, ४५. बन्यो (?), ४६. गम्यो, ४७. केवी, ४८. होशथी, काळजीथी,
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