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जुलाई-२०१९
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श्रुतसागर चंद्रायणो- दिलभर उपला काम के देखी मोहीया, हरख्या हीवडा मोह-तमासा जोहीया । गोखां जोख अगो[ख?]५१ के दीपे देहरा, सोहे प्रभु प्रासाद स(स्वर्ग) का सेहरा दूहो-एहवें ऊतरने २ आवीया, चोमुख रे दरबार । चैत्य जुहारी नवा नवा, अनोपम बिंब अपार चाल-अनोपम बिंब ही उपेक्, वेदबारीयां दीपेंक। उनका नाम है चोमुख, दरसण दीठां गया है दूख भवीजि(ज)न भावना भावेक्, नवे निध लक्ष्मी पावेक् । मंडाण देखतां मोहेक्, मुनिजि(ज)न-पादुका सोहेक् एक दौ(दो)य फेर ही फरीयाक्, दिलमें काम हे धरीयाक् । मुगति-महेलमें वरीयाक्५, चिंत्या काम ही सरीया ६ दूहो- एकण जीभें किम कहुं, ऊण देवल केरी छोज५७ । प्रदिक्ष(दक्षिणा दोय पुं(पू)जी प्रभु, अब खेलामंडप मोज चालि- खेलामंडप में खासाक्, उसीका देख तमासाक् । केहतां कोरणी नावेक, मुनिजि(ज)न भावना भावेक् संघ बहु देशना आवेक्, पूजा थ्या(था)ट" बनावेक् । वाजा छत्रीस ही वाजेंक, गगन[में] मेहुला गाजेंक् खेला खंतसे खेलेक्, डंडा-रस ही जेलेंक् । उंचा काम ही ओपेक्, ऐसा मंडप ही दीपेंक् दहा- अब दरसण प्रभु देखवा, धरी ध्यांन मनरंग। मोतीडे मेह वरसीया, मुझ घर आई गंग तीरथ पांच प्रगट अछ, जातां डावे वां(ठां?)म। हाथी चोमुख? सोभता, जपता श्रीजिननांम
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४९. उपरनु, ५०. जोया (?), ५१. अगोचर?, ५२. उतरीने, ५३. खरेखर ‘चार’ संख्याना अर्थमां(?), ५४. रचना, ५५. प्राप्त कर्यु, ५६. सर्या पूर्ण थया, ५७. शोभा?, ५८. पूजानो समुदाय, ५९. दांडीया रास,
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