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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __16 जुलाई-२०१९ ॥२८॥ ॥२९॥ ॥३०॥ ॥३१॥ श्रुतसागर चंद्रायणो- दिलभर उपला काम के देखी मोहीया, हरख्या हीवडा मोह-तमासा जोहीया । गोखां जोख अगो[ख?]५१ के दीपे देहरा, सोहे प्रभु प्रासाद स(स्वर्ग) का सेहरा दूहो-एहवें ऊतरने २ आवीया, चोमुख रे दरबार । चैत्य जुहारी नवा नवा, अनोपम बिंब अपार चाल-अनोपम बिंब ही उपेक्, वेदबारीयां दीपेंक। उनका नाम है चोमुख, दरसण दीठां गया है दूख भवीजि(ज)न भावना भावेक्, नवे निध लक्ष्मी पावेक् । मंडाण देखतां मोहेक्, मुनिजि(ज)न-पादुका सोहेक् एक दौ(दो)य फेर ही फरीयाक्, दिलमें काम हे धरीयाक् । मुगति-महेलमें वरीयाक्५, चिंत्या काम ही सरीया ६ दूहो- एकण जीभें किम कहुं, ऊण देवल केरी छोज५७ । प्रदिक्ष(दक्षिणा दोय पुं(पू)जी प्रभु, अब खेलामंडप मोज चालि- खेलामंडप में खासाक्, उसीका देख तमासाक् । केहतां कोरणी नावेक, मुनिजि(ज)न भावना भावेक् संघ बहु देशना आवेक्, पूजा थ्या(था)ट" बनावेक् । वाजा छत्रीस ही वाजेंक, गगन[में] मेहुला गाजेंक् खेला खंतसे खेलेक्, डंडा-रस ही जेलेंक् । उंचा काम ही ओपेक्, ऐसा मंडप ही दीपेंक् दहा- अब दरसण प्रभु देखवा, धरी ध्यांन मनरंग। मोतीडे मेह वरसीया, मुझ घर आई गंग तीरथ पांच प्रगट अछ, जातां डावे वां(ठां?)म। हाथी चोमुख? सोभता, जपता श्रीजिननांम ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ ४९. उपरनु, ५०. जोया (?), ५१. अगोचर?, ५२. उतरीने, ५३. खरेखर ‘चार’ संख्याना अर्थमां(?), ५४. रचना, ५५. प्राप्त कर्यु, ५६. सर्या पूर्ण थया, ५७. शोभा?, ५८. पूजानो समुदाय, ५९. दांडीया रास, For Private and Personal Use Only
SR No.525348
Book TitleShrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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