Book Title: Shrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जुलाई-२०१९ ॥७॥ ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ श्रुतसागर गाजत वीर घनाघन राजि(ज)त छाजत हाथ त्रिसुल ते ढालौ५, तेल सिंदूर चढावत नैव्यद मद पीयंत सदा जटीयालौ, रिद्ध समृद्ध भंडार भरावत शत्रु को नास करै नित कालो, नित्य प्रणांम कहै जटीयाल तुं जागती जोतस्युं दीनदयालो चालि- माणकचोकमें आयाक्, देखत दल ही भाया, झरोका जालीयां जोखांक्, जैसी इंद्र की गोखांक् सींगी बंध है चंगाक्, पुंठे२१ वहत है गंगाक्। पूरव पोल ही पेखीक्, उपर गोखकुं देखीक् करी कोरणी नीकीक, बीजी वात है फीकीक्२२ । ऐरावत एहवौ गु(ग)ज्जेक्२३, कायर देख ही धुज्जैक्४ अंबावाडी हे एसीक्, इंद्रविमान ही तेसीक्५ । जपै नवकार है लीनाक्, प्रभु ध्यांनसैं भीनाक् रणछोड मुंता हे राजीक्, जस की नोप(ब)तां बाजीक् । आगल देहरा भारीक्, तिणका काम हे बारीक उठी२६ का काम ही लाधाक्२७, सावा" जगतमैं बाधाक् । लक्ष्मी लाहा लीधाक्, प्रेमरस ही पीधाक् आगल प्रदक्षणा पेखीक्, बिचमें खाल" ही देखीक् । कौट कांगरा ताजाक्, तिणका काम हैं जाझाक्२० दूहो- प्रदक्षिणा देई आवीया, माणकचोक मझार । हिवै चढतां प्रभु-पावडी', गोग-दैव जुहार चंद्रायणौ- देखी बीजी पोल प्रेम बहु पावीया, कोरणीआ अति कहर२२ पेख मन भावीया, थंभ अढारै सोहे के दीपें बारणा, हरहां३३ केहतां नावें पार हिवै मांहिं धारणा ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ १४. मदमस्त हाथी(?), १५. ढाल, १६. नैवेद, १७.जटावाळो, १८. गम्यो, १९. झरूखा, २०. आनंद आपनारा, २१. पाछळ, २२. मोळी, २३. गाजे, २४. ध्रुजे, २५. तेवी, २६. ?, २७. ?, २८. ?, २९. खाळ=नीक, ३०. घj, ३१. जिनालयना पगथिया, ३२. मनोहर,?, ३३. सारां, गुण, वखाण?, For Private and Personal Use Only

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