Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana Author(s): Harishankar Pandey Publisher: Jain Vishva BharatiPage 12
________________ दस लोभ रूप पांच विकारों को अपने स्वामी के रूप में वरण कर लेता है । मोह आत्मा और उसके शील एवं गुणों को दाव पर लगा देता है । आत्मा का वैभव, श्री तथा शोभा का चिरहरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, उस समय अपने शील और स्वरूप की रक्षा के लिए आत्मा की जो पुकार होती है, वही पर आत्म शुद्धिपरक स्तुति का जन्म होता है । आत्म शुद्धि के लिए की गई स्तुतियां - जिनमें संसारिक सुख या लिप्सा पूर्ति की कामना नहीं रहती केवल आत्मा को गुणों से पूर्ण करने की प्रार्थना होती है । 'सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु' मुक्त आत्माएं मुभं मुक्ति पद प्रदान करें । यह स्तुत्य के गुणों के अपने में धारण करने की प्रक्रिया है और यही स्तुति का पवित्रतम लक्ष्य होता है । हिन्दी भाषा में निबद्ध प्रस्तुत शोधग्रन्थ प्रभूत नवीन सामग्री उपस्थित करता है । मेरी जानकारी के अनुसार श्रीमद्भागवत की स्तुतियों पर इस प्रकार का यह सर्वप्रथम ग्रन्थ है। लेखक साधुवाद के पात्र हैं। उनके परिश्रम और शोधवृत्ति ने एक उपयोगी समीक्षा- ग्रन्थ देकर भारतीय स्तुति-विद्या की प्रभूत श्रीवृद्धि की है। विद्वान् पाठक इस सेवा से अवश्य ही लाभान्वित होंगे । लाडनूं शिवरात्रि १.१२.९४ Jain Education International श्रीचन्द रामपुरिया कुलाधिपति जैन विश्व भारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय लाडनूं ( राजस्थान) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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