Book Title: Shrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Author(s): Harishankar Pandey
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ आठ ऽस्मिविधूतभेदमोहः ।' राजा परीक्षित् अहंकार के विनाश होते ही आत्मा की एकता रूप महायोग में स्थित हो गएब्रह्मभूतो महायोगी निस्संगश्छिन्नसंशयः। -~~~~भाग पु० १२-६-१० इसलिए भक्ति को कर्म, ज्ञान और योग से भी श्रेष्ठ कहा गया है-सा तु कर्मज्ञानयोगेभ्योऽप्यधिकतरा, ना० भ० सू० २५ । भक्ति के बिना किसी भी अन्य साधन से मुक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है। प्रभु भक्ति से भक्त वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है, जिसे निविषयी संन्यासी लाख प्रयत्न के बाद भी नहीं पा सकते हैं। ___ राग-द्वेष की मुक्ति की बात सर्वत्र प्रतिपादित की गई है। ये ही संसार के मुख्य कारण हैं। परन्तु भक्ति के बिना इनसे भी छुटकारा नहीं मिल सकता । भक्त भक्ति से मुक्त बन्धन वाला हो जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में श्रीमद्भागवत की स्तुतियों पर नया प्रकाश डाला गया है। लेखक की समीक्षा शक्ति अत्यन्त प्रशंसनीय है। वह स्तुतियों के हृदय को इतना स्पष्ट कर देते हैं कि पाठक को भक्ति की सहज अनुभूति होने लगती है। स्तुतियों में समाविष्ट दार्शनिक एवं धार्मिक दष्टियों का संकलन लेखक ने अत्यन्त विवेकपूर्वक किया है, जिससे पाठक सहज ही यह जान सकता है कि दार्शनिक जगत् को भागवत की क्या देन है । भागवत के प्रथम श्लोक में जिस परमसत्य का निर्देश किया गया है, वह सभी भारतीय दर्शनों को किसी न किसी रूप में मान्य है। इस तथ्य को लेखक ने ग्रन्थ के चतुर्थ अध्याय के प्रारम्भ में स्पष्ट कर दिया है। डा० पांडेय ने पांचवे, छठे एवं सातवें अध्याय में क्रमशः स्तुतियों का काव्यमूल्य एवं रसभाव योजना, स्तुतियों में अलंकार, स्तुतियों में गीतितत्त्व, छन्द और भाषा के अन्तर्गत श्रीमदभागवत के स्तुतियों का काव्यशास्त्रीय, रसशास्त्रीय, अलंकार शास्त्रीय गीतिशास्त्रीय एवं छन्दशास्त्रीय विवेचन करने का सफल प्रयास किया है। आठवें अध्याय में समस्त ग्रन्थ का उपसंहार दिया गया है । ____ मुझे पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन से भक्ति-दर्शन के जिज्ञासु लाभान्वित होंगे एवं दार्शनिक जगत् को इस विषय पर और अधिक अन्वेषण का प्रोत्साहन मिलेगा। इस ग्रंथ का बहुशः प्रचार अभीष्ट है । लाडनूं -नथमल टाटिया ५.१२.९४ निदेशक : अनेकांत शोधपीठ जैन विश्वभारती, लाडनूं Jain Education International For Private & Personal Use Only f a lainelibrary.org

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