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श्रमण सूक्त
जा
स
धिरत्थु ते जसोकामी
जो त जीवियकारणा। वन्त इच्छसि आवेउ सेय ते मरण भवे।।
(दस २ ७)
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हे यश कामिन् । धिक्कार है तुझे । जो तू क्षणभगुर जीवन के लिए बनी हुई वस्तु को पाने की इच्छा करता है। इससे तो तेरा मरना श्रेय है।
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